कॉमन विधि के सन्दर्भ में रिट (writ) या प्रादेश या समादेश का अर्थ प्रशासनिक या न्यायिक अधिकार से युक्त किसी संस्था द्वारा दिया गया औपचारिक आदेश है।
न्यायालय द्वारा जारी रिट के प्रकार – TYPES OF WRITS IN HINDI
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संवैधानिक उपचारों सम्बन्धी मूलाधिकार का प्रावधान अनुच्छेद 32-35 तक किया गया है. संविधान के भाग तीन में मूल अधिकारों का वर्णन है. यदि मूल अधिकारों का राज्य द्वारा उल्लंघन किया जाता है तो राज्य के विरुद्ध न्याय पाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय में और अनुच्छेद 226 के अधीन उच्च न्यायालय में रिट (writ) याचिका दाखिल करने अधिकार नागरिकों को प्रदान किया गया है. संविधान में निम्नलिखित आदेशों का उल्लेख (Types of Writs issued by Courts) है –
- बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)
- परमादेश रिट (Mandamus)
- प्रतिषेध रिट (Prohibition)
- उत्प्रेषण लेख (Writ of Certaiorari)
- अधिकार पृच्छा (Quo Warranto)
बंदी प्रत्यक्षीकरण (HABEAS CORPUS)
यह रिट (writ) उस अधिकारी (authority) के विरुद्ध दायर किया जाता है जो किसी व्यक्ति को बंदी बनाकर (detained) रखता है. इस रिट (writ) को जारी करके कैद करने वाले अधिकारी को यह निर्देश दिया जाता है कि वह गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायालय (court) में पेश करे. इस रिट (writ) का उद्देश्य मूल अधिकार में दिए गए “दैहिक स्वतंत्रता के संरक्षण के अधिकार” का अनुपालन करना है. यह रिट अवैध बंदीकरण के विरुद्ध प्रभावी कानूनी राहत प्रदान करता है.
परमादेश रिट (MANDAMUS)
यह रिट (writ) न्यायालय द्वारा उस समय जारी किया जाता है जब कोई लोक अधिकारी अपने कर्तव्यों के निर्वहण से इनकार करे और जिसके लिए कोई अन्य विधिक उपचार (कोई कानूनी रास्ता न हो) प्राप्त न हो. इस रिट के द्वारा किसी लोक पद के अधिकारी के अतिरिक्त अधीनस्थ न्यायालय अथवा निगम के अधिकारी को भी यह आदेश दिया जा सकता है कि वह उसे सौंपे गए कर्तव्य का पालन सुनिश्चित करे.
प्रतिषेध रिट (PROHIBITION)
यह रिट (writ) किसी उच्चतर न्यायालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालयों के विरुद्ध जारी की जाती है. इस रिट (writ) को जारी करके अधीनस्थ न्यायालयों को अपनी अधिकारिता के बाहर कार्य करने से रोका जाता है. इस रिट के द्वारा अधीनस्थ न्यायालय को किसी मामले में तुरंत कार्रवाई करने तथा की गई कार्रवाई की सूचना उपलब्ध कराने का आदेश दिया जाता है.
उत्प्रेषण लेख (WRIT OF CERTIORARI)
यह रिट (writ) भी अधीनस्थ न्यायालयों (sub-ordinate courts) के विरुद्ध जारी किया जाता है. इस रिट (writ) को जारी करके अधीनस्थ न्यायालयों को यह निर्देश दिया जाता है कि वे अपने पास संचित मुकदमे के निर्णय लेने के लिए उस मुकदमे को वरिष्ठ न्यायालय अथवा उच्चतर न्यायालय को भेजें. उत्प्रेषण लेख का मतलब उच्चतर न्यायालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालय में चल रहे किसी मुक़दमे के प्रलेख (documents) की समीक्षा (review) मात्र है, इसका तात्पर्य यह नहीं है कि उच्चतर न्यायालय अधीनस्थ न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध ही हो.
अधिकार पृच्छा (QUO WARRANTO)
इस रिट (writ) को उस व्यक्ति के विरुद्ध जारी किया जाता है जो किसी ऐसे लोक पद (public post) को धारण करता है जिसे धारण करने का अधिकार उसे प्राप्त नहीं है. इस रिट (writ) द्वारा न्यायालय लोकपद पर किसी व्यक्ति के दावे की वैधता की जाँच करता है. यदि उसका दावा निराधार (not well-founded) है तो वह उसे पद से निष्कासन कर देता है. इस रिट के माध्यम से किसी लोक पदधारी को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर आदेश देने से रोका जाता है.
रिट
Writ Petition एक प्रकार का written order है, जो न्यायालय द्वारा किसी सरकारी संस्थान को कार्य को करने अथवा न करने के लिए दिया जाता है।
संविधान के भाग तीन में मूल अधिकार का वर्णन किया गया है। संवैधानिक उपचारों संबंधित मूल अधिकार का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 32-35 में किया गया है।
यदि मूल अधिकार का उल्लंघन राज्य द्वारा किया जाता है तो राज्य के विरुद्ध न्याय पाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 32 के अन्तर्गत उच्चतम न्यायालय में जबकि अनुच्छेद 226 के अन्तर्गत उच्च न्यायालय में writ petition दाखिल करने का अधिकार दिया गया है।
रिट के प्रकार
1. बंदी प्रत्यक्षीकरण ( Habeas Corpus)
2. परमादेश (Mandamus)
3. प्रतिषेध (Prohibition)
4. उत्प्रेषण-लेख (Certiorari)
5. अधिकार-पृच्छा (Quo warranto)
बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)
Habeas Corpus एक लैटिन शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘Produce the Body’ अर्थात किसी व्यक्ति का शरीर पेश करें।
हिन्दी में Habeas Corpus को बंदी प्रत्यक्षीकरण कहते हैं जिसका अर्थ होता है ‘बंदी को प्रत्यक्ष करना’ अर्थात सामने लाना।
यह रिट उस अधिकारी के विरुद्ध दायर किया जाता है जो किसी व्यक्ति को बंदी बनाकर रखता है। इस रिट को जारी करके गिरफ्तार करने वाले अधिकारी को यह निर्देश दिया जाता है कि वह गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायालय में पेश करें।
Habeas Corpus पिड़ित व्यक्ति के ओर से कोई भी दायर कर सकता है। पिड़ित को न्यायालय में उपस्थित होना आवश्यक नहीं है।
यह फैसला कानू सान्याल बनाम जिला मजिस्ट्रेट (दार्जिलिंग) के वाद में आया था।
इस रिट का उद्देश्य मूल अधिकार में दिए गए दैहिक स्वतंत्रता के संरक्षण के अधिकार का अनुपालन करना है। यह रिट अवैध गिरफ्तारी के विरुद्ध कानूनी राहत प्रदान करता है।
Habeas Corpus सुनिश्चित करता है कि गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाए जिसके अन्तर्गत यह सुनिश्चित किया जाए की उसकी गिरफ्तारी वैध है या नहीं। यदी अवैध है तो उसे release कर उसके freedom को पुनः स्थापित किया जाए।
परमादेश (Mandamus)
Mandamus का अर्थ होता है ‘to give the mandate’ तथा हिन्दी में परमादेश का अर्थ होता है ‘हम आदेश देते हैं’।
इस रिट के अन्तर्गत न्यायालय से यह appeal की जाती है कि court इस प्रकार का आदेश दे कि कोई भी सरकारी संस्थान अथवा लोक अधिकारी अपने कर्तव्यों का पालन करें।
यदि कोई लोक अधिकारी जिसे कानून के अन्तर्गत कोई कार्य करना चाहिए जिसे वह नहीं कर रहा है तो High Court अथवा Supreme Court में Mandamus Writ दायर किया जा सकता है। इस writ के द्वारा किसी लोक पद के अधिकारी के अलावा अधीनस्थ न्यायालय अथवा निगम के अधिकारी को भी यह आदेश दिया जा सकता है कि वह उसे सौंपे गए कर्तव्यों का पालन करें।
* यह रिट राष्ट्रपति तथा राज्यपाल के विरुद्ध जारी नहीं हो सकता
प्रतिषेध (Prohibition)
अर्थात ‘मना करना’यह writ किसी उच्चतर न्यायालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालयों के विरुद्ध जारी की जाती है।
इस writ को जारी करके अधीनस्थ न्यायालयों को अपने अधिकारीता के बाहर कार्य करने से रोका जाता है। यह writ सिर्फ Judicial अथवा Semi-Judicial के विरुद्ध ही जारी किया जाता है।
उत्प्रेषण-लेख (Certiorari)
अर्थात Produce the Certificate
अर्थात उच्चतर न्यायालय अधीनस्थ न्यायालय से किसी वाद के बारे में जो उस अधीनस्थ न्यायालय में चल रहा होता है, उसकी समिक्षा के लिए documents की demand करता है।
इसका तात्पर्य यह नहीं है कि उच्चतर न्यायालय अधीनस्थ न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध ही हो।
ऐसी कोई भी authorities जो legal functions का अथवा judicial functions का निर्वाहण करती है उस पर यह writ लागू होती है। Certiorari writ तभी लगता है जब किसी वाद का निर्णय lower court द्वारा दिया जा चुका हो।
अधिकार पृच्छा (Quo Warranto)
अधिकार पृच्छा का अर्थ यह है कि उच्च न्यायालय अथवा उच्चतम न्यायालय किसी भी लोक अधिकारी से यह पूछ सकता है कि आप किस position से इस पद को hold कर रहे हैं।
अर्थात Quo warranto उस व्यक्ति के विरुद्ध जारी किया जाता है जो किसी ऐसे लोक पद को धारण करता है जिसे धारण करने का अधिकार उसे नहीं है।
अनुच्छेद 139 के अन्तर्गत सांसद द्वारा supreme court को इन रिटो के अलावा और भी रिट जारी करने का अधिकार दिया गया है।
रिट याचिका क्या होती है?
रिट, कोर्ट का एक उपकरण या आदेश है, जिसके द्वारा न्यायालय (सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय) किसी व्यक्ति, अधिकारी या प्राधिकारी को एक कार्य करने या करने से रोकने का निर्देश देती है। ऐसा आदेश चाहने वाला व्यक्ति सम्बंधित न्यायालय में याचिका दायर कर सकता है, जिसे रिट याचिका के रूप में जाना जाता है।
"जहां राइट है, वहां रिट है"
यह सच है, कि मौलिक अधिकारों की घोषणा तब तक निरर्थक है, जब तक कि इन अधिकारों को लागू करने के लिए एक प्रभावी मशीनरी नहीं है। वास्तव में, यह वह उपाय है जो किसी अधिकार को वास्तविक बनाता है, अगर कोई उपाय नहीं है, तो कोई अधिकार भी नहीं है। इसीलिए हमारे संविधान के निर्माताओं द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 और अनुच्छेद 226 के तहत इन अधिकारों को लागू करने के लिए एक प्रभावी उपाय प्रदान करने के लिए सोचा गया था।
अनुच्छेद 32 और 226 के तहत, भारत के सर्वोच्च न्यायालय और भारत के विभिन्न उच्च न्यायालयों को भारतीय संविधान के तहत प्रदान किए गए मौलिक अधिकारों का रक्षक और गारंटर बनाया गया है। अनुच्छेद 32 और 226 के तहत संविधान एक नागरिक के मौलिक अधिकारों को लागू करने / संरक्षण के लिए सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों को रिट जारी करने का अधिकार देता है। इस प्रकार, एक व्यक्ति जिसके अधिकार का एकपक्षी प्रशासनिक कार्रवाई द्वारा उल्लंघन किया गया है, वह रिट के माध्यम से एक उपयुक्त उपाय के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है।
"जहां राइट है, वहां रिट है"
यह सच है, कि मौलिक अधिकारों की घोषणा तब तक निरर्थक है, जब तक कि इन अधिकारों को लागू करने के लिए एक प्रभावी मशीनरी नहीं है। वास्तव में, यह वह उपाय है जो किसी अधिकार को वास्तविक बनाता है, अगर कोई उपाय नहीं है, तो कोई अधिकार भी नहीं है। इसीलिए हमारे संविधान के निर्माताओं द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 और अनुच्छेद 226 के तहत इन अधिकारों को लागू करने के लिए एक प्रभावी उपाय प्रदान करने के लिए सोचा गया था।
अनुच्छेद 32 और 226 के तहत, भारत के सर्वोच्च न्यायालय और भारत के विभिन्न उच्च न्यायालयों को भारतीय संविधान के तहत प्रदान किए गए मौलिक अधिकारों का रक्षक और गारंटर बनाया गया है। अनुच्छेद 32 और 226 के तहत संविधान एक नागरिक के मौलिक अधिकारों को लागू करने / संरक्षण के लिए सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों को रिट जारी करने का अधिकार देता है। इस प्रकार, एक व्यक्ति जिसके अधिकार का एकपक्षी प्रशासनिक कार्रवाई द्वारा उल्लंघन किया गया है, वह रिट के माध्यम से एक उपयुक्त उपाय के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है।
रिट के प्रकार क्या हैं?
रिट जारी करने का अधिकार, मुख्य रूप से प्रत्येक नागरिक को संवैधानिक उपचार का अधिकार उपलब्ध कराने के लिए होता है। संवैधानिक उपचार का अधिकार भारतीय नागरिकों को प्रदान किए गए सभी मौलिक अधिकारों के संरक्षण और उनको सही ढंग से लागू करने के लिए संविधान द्वारा प्रदान की गई एक गारंटी है। इसलिए, इन अधिकारों को लागू करने के लिए भारतीय संविधान, सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों को हैबियस कॉरपस (बन्दी प्रत्यक्षीकरण), मैंडेमस (परमादेश), सर्टिओरी (उत्प्रेषण-लेख), प्रोहिबिसन (निषेध) और क्वो-वारंटो (अधिकार-पृच्छा) की प्रकृति में रिट जारी करने का अधिकार देता है। भारतीय संसद को संविधान के तहत किसी कानून को लागू करके किसी भी या सभी रिटों को जारी करने के लिए किसी भी न्यायालय को सशक्त बनाने का अधिकार है। इन रिटों पर नीचे विस्तार से चर्चा की गई है-
हैबियस कॉरपस (बन्दी प्रत्यक्षीकरण)
"हैबियस कॉरपस" एक लैटिन शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है "आपके पास कोई व्यक्ति हो सकता है" यह रिट न्यायलयों द्वारा किसी ऐसे व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष पेश करने के लिए जारी की जाती है, जिसे हिरासत में लिया गया है, चाहे वह जेल में हो या निजी हिरासत। अगर ऐसी हिरासत अवैध पायी जाती है, तो उसे रिहा कर दिया जाता है।
मैंडेमस (परमादेश)
मैंडेमस एक लैटिन शब्द है, जिसका अर्थ है "वी कमांड"। मैंडेमस सुप्रीम कोर्ट या उच्च न्यायालय द्वारा निचली न्यायालय, न्यायाधिकरण या सार्वजनिक प्राधिकरण को दिया गया सार्वजनिक या वैधानिक कर्तव्य निभाने का आदेश है। यह रिट सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट द्वारा तब जारी की जाती है, जब कोई भी सरकार, न्यायालय, निगम, पब्लिक अथॉरिटी कोई भी पब्लिक ड्यूटी करने में नाकाम रहती है।
सर्टिओरी (उत्प्रेषण-लेख)
शाब्दिक रूप से, सर्टिओरी का अर्थ है प्रमाणित होना। सर्टिफिकेट की रिट सुप्रीम कोर्ट या किसी उच्च न्यायालय द्वारा निचली न्यायालय, ट्रिब्यूनल या अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण द्वारा पहले से पारित आदेश को रद्द करने के लिए जारी की जाती है।
सर्टिओरी की रिट जारी करने के लिए कुछ शर्तें आवश्यक हैं-
हैबियस कॉरपस (बन्दी प्रत्यक्षीकरण)
"हैबियस कॉरपस" एक लैटिन शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है "आपके पास कोई व्यक्ति हो सकता है" यह रिट न्यायलयों द्वारा किसी ऐसे व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष पेश करने के लिए जारी की जाती है, जिसे हिरासत में लिया गया है, चाहे वह जेल में हो या निजी हिरासत। अगर ऐसी हिरासत अवैध पायी जाती है, तो उसे रिहा कर दिया जाता है।
मैंडेमस (परमादेश)
मैंडेमस एक लैटिन शब्द है, जिसका अर्थ है "वी कमांड"। मैंडेमस सुप्रीम कोर्ट या उच्च न्यायालय द्वारा निचली न्यायालय, न्यायाधिकरण या सार्वजनिक प्राधिकरण को दिया गया सार्वजनिक या वैधानिक कर्तव्य निभाने का आदेश है। यह रिट सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट द्वारा तब जारी की जाती है, जब कोई भी सरकार, न्यायालय, निगम, पब्लिक अथॉरिटी कोई भी पब्लिक ड्यूटी करने में नाकाम रहती है।
सर्टिओरी (उत्प्रेषण-लेख)
शाब्दिक रूप से, सर्टिओरी का अर्थ है प्रमाणित होना। सर्टिफिकेट की रिट सुप्रीम कोर्ट या किसी उच्च न्यायालय द्वारा निचली न्यायालय, ट्रिब्यूनल या अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण द्वारा पहले से पारित आदेश को रद्द करने के लिए जारी की जाती है।
सर्टिओरी की रिट जारी करने के लिए कुछ शर्तें आवश्यक हैं-
- न्यायालय, न्यायाधिकरण या कानूनी अधिकार रखने वाले अधिकारी के पास न्यायिक रूप से कार्य करने के लिए कर्तव्य के साथ प्रश्न निर्धारित होना चाहिए।
- किसी न्यायालय, न्यायाधिकरण या अधिकारी को ऐसे न्यायालय, न्यायाधिकरण या अधिकारी के लिए बिना अधिकार क्षेत्र या न्यायिक प्राधिकरण की सीमा के बाहर के कानून का आदेश पारित करना होगा।
- आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ भी हो सकता है या आदेश में मामले के तथ्यों के मूल्यांकन करने में निर्णय की त्रुटि हो सकती है।
प्रोहिबिसन (निषेध)
प्रोहिबिसन का मतलब मना करना या रोकना है, और इसे 'स्टे ऑर्डर' के नाम से भी जाना जाता है। यह रिट तब जारी की जाती है जब एक निचली न्यायालय या कोई न्यायिक सिस्टम इसमें निहित सीमाओं या शक्तियों को स्थानांतरित करने की कोशिश करता है। प्रोहिबिसन का अधिकार किसी भी उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय द्वारा किसी भी निचली न्यायालय, या अर्ध-न्यायिक सिस्टम को किसी विशेष मामले में कार्यवाही को जारी रखने से रोकने के लिए जारी किया जाता है, जहाँ उसे उस मामले में पुनः प्रयास करने का कोई अधिकार नहीं है। इस रिट के जारी होने के बाद निचली न्यायालय आदि में कार्यवाही समाप्त हो जाती है।
प्रोहिबिसन और सर्टिओरी की रिट के बीच तुलना:
प्रोहिबिसन का मतलब मना करना या रोकना है, और इसे 'स्टे ऑर्डर' के नाम से भी जाना जाता है। यह रिट तब जारी की जाती है जब एक निचली न्यायालय या कोई न्यायिक सिस्टम इसमें निहित सीमाओं या शक्तियों को स्थानांतरित करने की कोशिश करता है। प्रोहिबिसन का अधिकार किसी भी उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय द्वारा किसी भी निचली न्यायालय, या अर्ध-न्यायिक सिस्टम को किसी विशेष मामले में कार्यवाही को जारी रखने से रोकने के लिए जारी किया जाता है, जहाँ उसे उस मामले में पुनः प्रयास करने का कोई अधिकार नहीं है। इस रिट के जारी होने के बाद निचली न्यायालय आदि में कार्यवाही समाप्त हो जाती है।
प्रोहिबिसन और सर्टिओरी की रिट के बीच तुलना:
- मामले की कार्यवाही की पेंडेंसी के दौरान प्रोहिबिसन का अधिकार उपलब्ध है, जबकि सर्टिओरी का अधिकार केवल आदेश या निर्णय की घोषणा होने के बाद ही प्राप्त किया जा सकता है।
- दोनों रिट कानूनी सिस्टमों के खिलाफ जारी की जाती हैं।
क्वो-वारंटो (अधिकार-पृच्छा)
क्वो-वारंटो शब्द का शाब्दिक अर्थ है "किस वारंट से?" या "आपका अधिकार क्या है?" यह रिट किसी व्यक्ति को सार्वजनिक पद धारण करने से रोकने के लिए जारी की जा सकती है, जिसका वह हकदार नहीं है। रिट के लिए संबंधित व्यक्ति को न्यायालय को यह समझाने की आवश्यकता होती है कि वह किस अधिकार से अपने पद का संचालन करता है। यदि किसी व्यक्ति ने जबरदस्ती किसी सार्वजनिक पद को संभाला है, तो न्यायालय उसे निर्देश दे सकती है कि वह उस पद से सम्बंधित किसी भी तरह की गतिविधियों को अंजाम न दे या शीघ्र ही उस पद को खाली कर दे। इस प्रकार, सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय ऐसे किसी व्यक्ति के लिए क्वो-वारंटो की रिट जारी करने का अधिकार दे सकती है, जो सेवानिवृत्ति की आयु के बाद भी उस पद पर रहता है।
क्वो-वारंटो जारी करने की शर्तें
क्वो-वारंटो शब्द का शाब्दिक अर्थ है "किस वारंट से?" या "आपका अधिकार क्या है?" यह रिट किसी व्यक्ति को सार्वजनिक पद धारण करने से रोकने के लिए जारी की जा सकती है, जिसका वह हकदार नहीं है। रिट के लिए संबंधित व्यक्ति को न्यायालय को यह समझाने की आवश्यकता होती है कि वह किस अधिकार से अपने पद का संचालन करता है। यदि किसी व्यक्ति ने जबरदस्ती किसी सार्वजनिक पद को संभाला है, तो न्यायालय उसे निर्देश दे सकती है कि वह उस पद से सम्बंधित किसी भी तरह की गतिविधियों को अंजाम न दे या शीघ्र ही उस पद को खाली कर दे। इस प्रकार, सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय ऐसे किसी व्यक्ति के लिए क्वो-वारंटो की रिट जारी करने का अधिकार दे सकती है, जो सेवानिवृत्ति की आयु के बाद भी उस पद पर रहता है।
क्वो-वारंटो जारी करने की शर्तें
- इसके लिए वह पद जिसके लिए यह रिट जारी की जा रही है, सार्वजनिक होना चाहिए और इसे एक कानून या संविधान द्वारा ही बनाया जाना चाहिए।
- पद में एक दृढ़ इच्छाशक्ति होनी चाहिए, न कि वह कार्य या रोजगार किसी अन्य की इच्छा पर निर्भर हो।
- ऐसे व्यक्ति को उस पद पर नियुक्त करना, संविधान या किसी वैधानिक उपकरण का उल्लंघन होना चाहिए।
रिट याचिका कैसे दायर करें?
विधायी और कार्यकारी हस्तक्षेप से मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए रिट एक सरल और सस्ता उपाय है। संविधान के अनुसार, रिट याचिका सीधे सुप्रीम कोर्ट या उच्च न्यायालयों में दायर की जा सकती है। इसे किसी नागरिक या आपराधिक मुकदमे में मौलिक अधिकार के लागू करने के लिए दायर किया जा सकता है।
एक लिखित याचिका नीचे दी गई प्रक्रिया का पालन करके दायर की जा सकती है:
एक लिखित याचिका नीचे दी गई प्रक्रिया का पालन करके दायर की जा सकती है:
- एक याचिका का प्रारूप तैयार करना
रिट दाखिल करने का पहला चरण एक रिट याचिका का प्रारूप तैयार करना होता है, जो आपके मामले को मौलिक अधिकार के उल्लंघन से संबंधित विवरण के साथ विस्तृत करता है। आपके प्रभावित अधिकार के प्रकार और संगठन में शामिल होने के आधार पर, याचिका में मामले के आवश्यक तथ्यों का उल्लेख किया जाना चाहिए। यह सलाह दी जाती है कि रिट याचिका का प्रारूप तैयार करने के लिए एक अच्छे वकील की मदद लेनी चाहिए। एक अच्छे वकील के पास रिट याचिका के विषय में सार्थक अनुभव होता है, जिससे की न्यायालय में आपके पक्ष में निर्णय आने की सम्भावना और भी बढ़ जाती है।
- उपयुक्त न्यायालय में आवेदन दाखिल करना
उस क्षेत्र के आधार पर जहां समस्या उत्पन्न हुई है, रिट याचिका दायर करने के लिए उपयुक्त न्यायालय (सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय) का निर्णय लिया जाता है। एक वकील आपको रिट दाखिल करने की जगह के साथ-साथ आवेदन दाखिल करने की थकाऊ प्रक्रिया से बचाने में भी मार्गदर्शन कर सकता है।
- कोर्ट फीस का भुगतान
उपयुक्त न्यायालय में रिट याचिका दायर करते समय न्यायालय की निर्धारित कोर्ट फीस आवेदक को चुकानी होगी। कोर्ट की फीस याचिका की लंबाई और कोर्ट के प्रकार के आधार पर अलग-अलग हो सकती है।
- न्यायालय में रिट का प्रवेश और सूचना
एक बार अपेक्षित न्यायालय शुल्क का भुगतान करने के बाद याचिका सफलतापूर्वक दायर हो जाती है, उसके बाद एक प्रारंभिक सुनवाई की जाएगी, जिसमें प्रवेश के लिए न्यायालय द्वारा याचिका पर विचार किया जाएगा। न्यायालय मामले के तथ्यों के आधार पर याचिका पर विचार करेगी कि क्या ये आगे ले जाने के लिए पर्याप्त है, या नहीं, और यदि यह ठीक पायी जाती है, तो न्यायालय द्वारा सुनवाई की अगली तारीख प्रदान की जाएगी। इसके अन्य पक्ष को भी सुनवाई की दी गई तारीख पर न्यायालय में पेश होने के लिए एक नोटिस भेजा जाएगा।
अंतिम चरण में, न्यायालय याचिका के सार पर विचार करेगी और दोनों पक्षों द्वारा दी गयी प्रस्तुतियाँ सुनने के बाद निर्णय देगी, जो कि यह उपयुक्त हो सकता है।
डॉ. अम्बेडकर ने अपनी एक संविधान सभा में बहस करते हुए कहा था कि “अगर मुझसे इस संविधान के किसी विशेष अनुच्छेद का नाम पूछा जाये, जिसके बिना ये संविधान शून्य हो सकता है - तो मैं अनुच्छेद 32 के आलावा और किसी भी अनुच्छेद का नाम नहीं लूंगा। यह अनुच्छेद संविधान की आत्मा और दिल की तरह है।”
भारतीय संविधान के तहत रिट जारी करने के लिए उच्चतम न्यायालयों और उच्च न्यायालयों द्वारा प्रदान की गई शक्तियाँ संविधान के बुनियादी ढांचे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसका कारण यह है कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए प्रभावी उपाय उपलब्ध कराए बिना मौलिक अधिकारों को प्रदान करना व्यर्थ होगा। यही कारण है कि सर्वोच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है, क्योंकि मौलिक अधिकार की सुरक्षा का अधिकार स्वयं एक मौलिक अधिकार है। इसलिए, रिट याचिका दायर करते समय उच्चतम न्यायालय के समक्ष उच्च न्यायालय का रुख करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
अंतिम चरण में, न्यायालय याचिका के सार पर विचार करेगी और दोनों पक्षों द्वारा दी गयी प्रस्तुतियाँ सुनने के बाद निर्णय देगी, जो कि यह उपयुक्त हो सकता है।
डॉ. अम्बेडकर ने अपनी एक संविधान सभा में बहस करते हुए कहा था कि “अगर मुझसे इस संविधान के किसी विशेष अनुच्छेद का नाम पूछा जाये, जिसके बिना ये संविधान शून्य हो सकता है - तो मैं अनुच्छेद 32 के आलावा और किसी भी अनुच्छेद का नाम नहीं लूंगा। यह अनुच्छेद संविधान की आत्मा और दिल की तरह है।”
भारतीय संविधान के तहत रिट जारी करने के लिए उच्चतम न्यायालयों और उच्च न्यायालयों द्वारा प्रदान की गई शक्तियाँ संविधान के बुनियादी ढांचे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसका कारण यह है कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए प्रभावी उपाय उपलब्ध कराए बिना मौलिक अधिकारों को प्रदान करना व्यर्थ होगा। यही कारण है कि सर्वोच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है, क्योंकि मौलिक अधिकार की सुरक्षा का अधिकार स्वयं एक मौलिक अधिकार है। इसलिए, रिट याचिका दायर करते समय उच्चतम न्यायालय के समक्ष उच्च न्यायालय का रुख करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
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