ज्यादातर केस में कंजूमर अपने
हक नहीं जानता है,जानते है वो कौनसे हक और अधिकार
है :
नए कंजूमर नियम 2019
- शिक्षा लेते समय हमे सही पढ़ाया ना जाना ,बुरा व्यवहार करना ताकि
स्टूडेंट्स पढ़ाने को ना बोले ,रैगिंग होना ,हरेशमेंट होना टीचर या
स्टूडेंट्स किसी द्वारा भी -इंस्टिट्यूट ,स्कूल कोई भी एजुकेशन की
जगह |
- मिलावटी सामान बेचना ,कार्ड ,डेबिट कार्ड से की गयी
पेमेंट का चार्ज ग्राहक से ही लेना |
- सामान सही मात्रा में ना देकर कम देना और मूल्य
अधिक वसूलना |
- कोई भी सामन लेते हुए सही समय पर डिलीवरी ना
करना ,अधिकतम मूल्य वसूल करना और
सामान बेचते समय बैग ,बंडल आदि के पैसे वसूलना मर्चेंट द्वारा ग्राहक
से ही |
- बस में यदि आपको सीट न
मिले या स्मोक द्वारा परेशान किया गया हो आपको और कंडक्टर एक्शन ना ले या
आपका सामन चोरी हुआ हो जैसे की कपड़े चोरी होना बस में तब भी बस के
कंडक्टर के नाम पर आप केस कर सकते है
1.
शिक्षा से सम्बंधित कंजूमर केस
-निम्नलिखित शिकायतों (complaints) पर भी आप कंस्यूमर कोर्ट (consumer court) में केस दर्ज करवा सकते है |
o
अगर आपको इंस्टिट्यूट, कॉलेज, या स्कूल में उचित शिक्षा कुशल शिक्षकों द्वारा प्रदान नहीं की जा रही है तो
आप शिकायत को दर्ज कर सकते है (consumer court) में |
o
जिन विद्यार्थियों को संस्थान द्वारा विश्वासघात का सामना
करना पड़ रहा है वह भी अपनी शिकायत कंस्यूमर कोर्ट (complaint in consumer court) में कर सकता है ।
o
आपको सिलेबस के अनुसार उचित शिक्षा नहीं प्रदान की जा रही
है तब भी आप शिकायत (complaint) को दर्ज कर सकते
है (consumer court) में ।
o
उनके द्वारा किए गए वादों को पूरा नहीं किया जा रहा है | तब भी आप शिकयत (complaint) को दर्ज कर सकते
है (consumer court) में ।
o उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में संशोधन कर 1993 में वस्तुओं के साथ-साथ सेवाओं को भी कन्ज़यूमर कोर्ट का विषय बना दिया गया था। हालांकि इसका काफी विरोध हुआ, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि स्टूडेंट्स कन्ज़यूमर हैं और एजुकेशनल इंस्टिट्यूट सर्विस देने वाली एजेंसी।
सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने साल 2003 में उस्मानिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी बनाम स्टेट ऑफ कर्नाटक के मामले में अहम फैसले दिए थे:
1. एजुकेशन इंस्टिट्यूट पूरे सेशन की फीस एक साथ नहीं ले सकते।
2. स्टूडेंट के संस्थान छोड़ने के वाजिब कारण होने पर अनुपातिक फी काट कर बाकी रकम लौटाई जाए।
3. ऑरिजनल सर्टिफिकेट कोई भी इंस्टिट्यूट नहीं रोक सकता चाहे कितना बड़ा इंस्टिट्यूट ही क्यों ना हो ।
यूजीसी ने भी इसी तर्ज पर नोटिफिकेशन जारी किया था:
1. छात्र के कुछ कक्षाएं लेने पर एक हज़ार रुपये काट कर बाकी रकम लौटाई जाए।
2. ऑरिजनल सर्टिफिकेट कोई भी इंस्टिट्यूट किसी भी दशा में नहीं रख सकता।
इसके बाद भी सुप्रीम कोर्ट के कुछ महत्वपूर्ण आदेश आए, जो दो जजों की बेंच के थे, इसलिए तीन जजों की बेंच के ये आदेश आज भी मान्य हैं, जिनके अनुसार एजुकेशनल इंस्टिट्यूट कन्ज़यूमर कोर्ट के सामने उत्तरदायी है। हालांकि 2009 में भी एक फैसला सुप्रीम कोर्ट ने दिया, जिसके अनुसार एग्जामिनेशन बोर्ड कन्ज़यूमर कोर्ट की परिधि में नहीं आते, लेकिन एजुकेशन इंस्टिट्यूट भ्रामक सूचनाएं देने और सेवा में कमी के मामले में उत्तरदायी हैं। 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने भूपेश खुराना बनाम बुद्धिस्ट मिशन डेंटल कालेज एंड हॉस्पिटल केस में कॉलेज को मान्यताप्राप्त बता कर छात्रों को भ्रमित करने का दोषी माना था।
अब छात्र अपने कॉलेज या स्कूल के खिलाफ इन बातों को लेकर कन्ज़यूमर कोर्ट जा सकते हैं:
1. स्कूल या कॉलेज की व्यवस्था का ठीक न होना
2. पर्याप्त शिक्षक न होना
3. सुविधाओं की कमी होना
4. कोर्स का समय पर शुरू न किया जाना
5. स्टडी मटीरियल का न दिया जाना
6. क्लास लेने के स्थान में परिवर्तन
7. ऑरिजनल सर्टिफिकेट देने से इनकार करना
8. संस्थान के बारे में गलत और भ्रामक सूचना देना
9. जॉब का वादा करके उसे पूरा न करना
10. कॉलेज छोड़ने पर फी न लौटाना
11. पूरे सत्र की फी एक साथ मांगना
खरीदार-दुकानदार से
सम्बंधित कंजूमर केस -निम्नलिखित शिकायतों (complaints) पर भी आप कंस्यूमर कोर्ट (consumer court) में केस दर्ज करवा सकते है |
जानें अपने अधिकार: दुकानदार नहीं ले सकता थैले के Extra पैसे और चार्जेज सेवा
फोरम ने आदेश दिया कि ग्राहक को थैले का पैसा देने के
लिए बाध्य नहीं किया जा सकता और ऐसा करना सीधे-सीधे अपनी सेवा में कमी करना है
मर्चेंट द्वारा
चंडीगढ़ उपभोक्ता आयोग ने हाल में बाटा इंडिया
लिमिटेड पर एक ग्राहक से जूते का डिब्बा ले जाने के लिए पेपर बैग के लिए तीन रुपया
लेने पर नौ हजार रुपये का जुर्माना लगाया. कानून के जानकारों का कहना है कि
उपभोक्ता आयोग का यह आदेश पूरे देश में वैधानिक रूप से लागू होगा और अगर थैले को
उसी स्टोर से लिया गया है जहां से सामान खरीदा गया है तो फिर स्टोर उस थैले के लिए
ग्राहक से अलग से चार्ज नहीं कर सकता. फोरम का यह आदेश
दिनेश प्रसाद रतूड़ी की शिकायत पर आया है जोकि काफी सुर्खियों में आया |
रतूड़ी ने उपभोक्ता
फोरम (Consumer Forum) को बताया कि
उन्होंने पांच फरवरी को सेक्टर 22- d के जूते के स्टोर
से एक जोड़ी जूता खरीदा. स्टोर ने कीमत 402 रुपये ली जिसमें
बैग की कीमत भी शामिल थी.
रतूड़ी ने यह कहकर
इसका विरोध किया कि बाटा एक तरफ तो थैले के लिए उनसे पैसा ले रहा है और दूसरी तरफ
थैले पर उसका ब्रांड भी छपा हुआ है जो कि न्यायोचित नहीं है. रतूड़ी ने तीन{3 RUPEE} रुपये का रिफंड और सेवा में कमी के लिए मुआवजा मांगा. फोरम ने कागज के थैले के लिए अतिरिक्त चार्ज लेने पर बाटा
को लताड़ा जोकि कंजूमर सुरक्षा के लिए ही कदम उठाया गया उस ग्राहक द्वारा |
ये भी पढ़ें:
https://www.deevaaanshi.com/consumer-protection-act
https://www.deevaaanshi.com/File-complaint-in-consumer-court
https://www.deevaaanshi.com/how-rich-people-invest-money-in
https://www.deevaaanshi.com/police-not-take-action-on-crime
फोरम ने आदेश दिया
कि ग्राहक को थैले का पैसा देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता और ऐसा करना
सीधे-सीधे सेवा में कमी करना है. उपभोक्ता फोरम ने आदेश दिया कि यह स्टोर की
ड्यूटी है कि वह उसका सामान खरीदने वाले को मुफ्त में थैला उपलब्ध कराए.
दिल्ली स्थित वकील सागर सक्सेना ने कहा, 'उपभोक्ता अदालत का यह फैसला पूरे देश में कानूनी रूप से
मान्य है. लोग देश में कहीं भी इस आदेश का जिक्र कर सकते है और थैले के लिए पैसा
देने से बच सकते हैं. आदेश में साफ है कि अगर थैला पर्यावरण हितैषी है तो भी
दुकानदार उसके लिए अतिरिक्त पैसा नहीं ले सकता|
डाक -सेवा से सम्बंधित कंजूमर केस -निम्नलिखित
शिकायतों (complaints) पर भी आप
कंस्यूमर कोर्ट (consumer court)
में केस दर्ज करवा सकते है |
डाक विभाग की लापरवाही के चलते हुए नुकसान के खिलाफ
समय पर सामान की डिलीवरी न देने के कारण उपभोक्ता फोरम ने भारतीय डाक को
सेवा में कमी का दोषी माना और उपभोक्ता को हर्जाना देने का आदेश दिया। कमीशन ने
माना कि समय पर सामान की डिलीवरी नहीं होने से उपभोक्ता को परेशानी का सामना करना
पड़ा। इस मामले में मध्य प्रदेश स्टेट कंज्यूमर कमीशन ने डाक विभाग की अपील को
खारिज करते हुए माध्यमिक शिक्षा मंडल पोस्ट ऑफिस के सब पोस्टमास्टर को सेवा में
कमी का दोषी माना। कमीशन ने विभाग को आदेश दिया कि वह उपभोक्ता को पार्सल भेजने
में भुगतान की गई राशि, 10 हजार रुपए {10
THOUSAND RUPEES}हर्जाना और 2 हजार रुपए परिवाद
व्यय का भुगतान करे।
क्या था मामला
जानिए हमारे साथ
1.
भोपाल के अवधपुरी इलाके के रहने वाले निवासी सुशांत राय ने
माध्यमिक शिक्षा मंडल स्थित पोस्ट ऑफिस जाकर 11 फरवरी 2014 को नई दिल्ली एक पार्सल भेजा था। लेकिन पार्सल निर्धारित
समय पर वहां नहीं पहुंचा। इस पर 3 मार्च को
उन्होंने माध्यमिक शिक्षा मंडल स्थित पोस्ट ऑफिस में संपर्क किया लेकिन उन्हें कोई
जानकारी नहीं दी गई। तब उन्होंने इसकी शिकायत डाल विभाग में की। लेकिन विभाग ने
बिना किसी कार्रवाई के उनकी शिकायत को बंद कर दिया।
2.
8 अप्रैल 2014 को उनका पार्सल उन्हें वापस मिला। वह खुला हुआ था और उसमें
से कई सामान गायब थे। यह देख उन्होंने उपभोक्ता फोरम जाने का निश्चय किया और जिला
फोरम में डाक विभाग के खिलाफ केस फाइल कर दिया। जहां से उन्हें जीत मिली। इस पर
डाक विभाग ने राज्य आयोग में अपील कर दी। राज्य आयोग ने दोनों पक्षों को सुना।
सुनवाई के बाद आयोग ने डाक विभाग की ओर से दायर की गई अपील को खारिज कर दिया और
जिला फोरम द्वारा तय किए गए मुआवजे को देने का निर्देश दिया।
आपके भी नुकसान की
हो सकती है भरपाई
1.
कोई भी कर सकता है शिकायत
उत्पाद या सेवा में किसी भी तरह की समस्या होने पर उपभोक्ता या उसके आधार कोई
दूसरा व्यक्ति कंज्यूमर फोरम में शिकायत दर्ज करा सकता है। इंडिविजुअल्स के अलावा
कोई पंजीकृत संस्था भी अपनी शिकायत कंज्यूमर फोरम में कर सकती है।
2.
यहां करें शिकायत जब भी कभी हो आपको समस्या
शिकायत कहां करनी है इसका निर्धारण कंज्यूमर के
नुकसान के आधार पर किया जाता है। अगर नुकसान 20 लाख रुपए से कम
का है तो जिला फोरम में इसकी शिकायत की जा सकती है। 20 लाख से ऊपर और 1 करोड़ रुपए से कम
का नुकसान होने पर राज्य आयोग पर शिकायत दर्ज करानी होती है। अगर नुकसान एक करोड़
रुपए से ज्यादा है तो राष्ट्रीय आयोग पर शिकायत दर्ज करानी होती है। इसके अलावा निचले फोरम से खारिज होने के बाद ऊपर की फोरम
में शिकायत की जा सकती है। कंज्यूमर
उपभोक्ता मामले की हेल्पलाइन (1800114000) और बेवसाइट (consumerhelpline.gov.in) पर जाकर भी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। इसलिए समय पर एक्शन
जरूर ले |
3.
सादे कागज में लिख कर की जा सकती है शिकायत कंजूमर कोर्ट में
उपभोक्ता एक सादे कागज पर अपनी शिकायत लिखकर फोरम में
दे सकता है। शिकायत में मामले का पूरा ब्यौरा होना चाहिए, जैसे कि घटना कहां और कब की है। इसके साथ ही शिकायत के
समर्थन में उपभोक्ता को सामान का बिल और अन्य दस्तावेज भी पेश करना होता है।
शिकायत पत्र में यह भी लिखा जाता है कि आप सामने वाली कंपनी से कितनी राहत चाहते
हैं।
4.
नाममात्र की देनी होती है फीस
उपभोक्ता फोरम में 5 लाख रुपए तक के दावे पर कोई कोर्ट फीस नहीं लगती। इससे ऊपर
की राशि के दावे के लिए नाममात्र की कोर्ट फीस जमा करना होगी। 5 लाख से 10 लाख रुपए तक के
दावे के लिए उपभोक्ताओं को 200 रुपए की कोर्ट
फीस जमा करनी होगी। और करोड़ तक के दावे में जोकि करोड़ से ऊपर का अधिकतम 5000 रुपया का डिमांड
ड्राफ्ट है |
5.
SERVICES से सम्बंधित कंजूमर केस -निम्नलिखित शिकायतों (complaints) पर भी आप कंस्यूमर कोर्ट (consumer court) में केस दर्ज करवा सकते है |
डेढ़ माह में LIC को करना होगा भुगतान और लगेगा
12 फीसद ब्याज, जानिए क्या है मामला
Lucknow News
लखनऊ में ग्राहक को बीमा का भुगतान न देने पर एलआइसी
को उपभोक्ता फोरम ने दिया डेढ़ माह में भुगतान करने का आदेश।
जिला उपभोक्ता प्रथम के न्यायिक सदस्य राजर्षि शुक्ला
ने लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति, वित्त अधिकारी और महाप्रबंधक को आदेश दिया है कि
स्वर्गीय पुत्तन लाल द्वारा कराए गए बीमा की राशि उनके पुत्र राजेश को सौंपें {न्यायधीस द्वारा सुनाया गया }।
एलआइसी से बीमा कराने के बाद उपभोक्ता को उसका लाभ न देने पर फोरम ने सख्त
रवैया अपनाया है। बीमा राशि ना दिए जाने की शिकायत पर कुलपति, वित्त अधिकारी व प्रबंधक को जिम्मेदार बताते हुए यह
आदेश दिया गया कि वह डेढ़ माह के अंदर देय नौ फीसद ब्याज के साथ राशि अदा करें।
फोरम ने कहा कि यदि तय अवधि में भुगतान नहीं किया गया तो कुल देय राशि पर 12 फीसद वार्षिक की दर से ब्याज देना होगा।
नरही निवासी राजेश कुमार के मुताबिक उसके पिता स्वर्गीय पुत्तनलाल लखनऊ
विश्वविद्यालय के आर्ट फैकल्टी में एक जुलाई 1981से चपरासी के पद पर कार्यरत थे। सरकार द्वारा चलाई जा
रही पेंशन व सामूहिक बीमा योजना के तहत उन्होंने एलआइसी से बीमा कराया था। प्रीमियम की राशि वेतन से प्रति माह कटती थी। 30 नवंबर,2007 को उनकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के बाद पुत्र राजेश ने
बीमा राशि के भुगतान के लिए आवेदन किया। बीमा कंपनी के साथ विश्वविद्यालय भी
भुगतान में टालमटोल करता रहा। तंग आकर राजेश ने जिला उपभोक्ता फोरम में वाद दायर
किया। न्यायिक अधिकारी राजर्षि शुक्ला ने मामले की सुनवाई के उपरांत एलआइसी के
प्रबंधक पेंशन समूह, लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलसचिव व वित्त अधिकारी को
आदेश दिया कि 45 दिनों के अंदर बोनस सहित एक लाख 34 हजार रुपये {1 LAKH 34 THOUSAND } नौ फीसद वार्षिक ब्याज की
दर से अदा करें।
नए कंजूमर नियम 2019 |
- शिक्षा लेते समय हमे सही पढ़ाया ना जाना ,बुरा व्यवहार करना ताकि
स्टूडेंट्स पढ़ाने को ना बोले ,रैगिंग होना ,हरेशमेंट होना टीचर या
स्टूडेंट्स किसी द्वारा भी -इंस्टिट्यूट ,स्कूल कोई भी एजुकेशन की
जगह |
- मिलावटी सामान बेचना ,कार्ड ,डेबिट कार्ड से की गयी
पेमेंट का चार्ज ग्राहक से ही लेना |
- सामान सही मात्रा में ना देकर कम देना और मूल्य
अधिक वसूलना |
- कोई भी सामन लेते हुए सही समय पर डिलीवरी ना
करना ,अधिकतम मूल्य वसूल करना और
सामान बेचते समय बैग ,बंडल आदि के पैसे वसूलना मर्चेंट द्वारा ग्राहक
से ही |
- बस में यदि आपको सीट न
मिले या स्मोक द्वारा परेशान किया गया हो आपको और कंडक्टर एक्शन ना ले या
आपका सामन चोरी हुआ हो जैसे की कपड़े चोरी होना बस में तब भी बस के
कंडक्टर के नाम पर आप केस कर सकते है
- शिक्षा लेते समय हमे सही पढ़ाया ना जाना ,बुरा व्यवहार करना ताकि
स्टूडेंट्स पढ़ाने को ना बोले ,रैगिंग होना ,हरेशमेंट होना टीचर या
स्टूडेंट्स किसी द्वारा भी -इंस्टिट्यूट ,स्कूल कोई भी एजुकेशन की
जगह |
1. एजुकेशन इंस्टिट्यूट पूरे सेशन की फीस एक साथ नहीं ले सकते।
2. स्टूडेंट के संस्थान छोड़ने के वाजिब कारण होने पर अनुपातिक फी काट कर बाकी रकम लौटाई जाए।
3. ऑरिजनल सर्टिफिकेट कोई भी इंस्टिट्यूट नहीं रोक सकता चाहे कितना बड़ा इंस्टिट्यूट ही क्यों ना हो ।
यूजीसी ने भी इसी तर्ज पर नोटिफिकेशन जारी किया था:
1. छात्र के कुछ कक्षाएं लेने पर एक हज़ार रुपये काट कर बाकी रकम लौटाई जाए।
2. ऑरिजनल सर्टिफिकेट कोई भी इंस्टिट्यूट किसी भी दशा में नहीं रख सकता।
इसके बाद भी सुप्रीम कोर्ट के कुछ महत्वपूर्ण आदेश आए, जो दो जजों की बेंच के थे, इसलिए तीन जजों की बेंच के ये आदेश आज भी मान्य हैं, जिनके अनुसार एजुकेशनल इंस्टिट्यूट कन्ज़यूमर कोर्ट के सामने उत्तरदायी है। हालांकि 2009 में भी एक फैसला सुप्रीम कोर्ट ने दिया, जिसके अनुसार एग्जामिनेशन बोर्ड कन्ज़यूमर कोर्ट की परिधि में नहीं आते, लेकिन एजुकेशन इंस्टिट्यूट भ्रामक सूचनाएं देने और सेवा में कमी के मामले में उत्तरदायी हैं। 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने भूपेश खुराना बनाम बुद्धिस्ट मिशन डेंटल कालेज एंड हॉस्पिटल केस में कॉलेज को मान्यताप्राप्त बता कर छात्रों को भ्रमित करने का दोषी माना था।
अब छात्र अपने कॉलेज या स्कूल के खिलाफ इन बातों को लेकर कन्ज़यूमर कोर्ट जा सकते हैं:
1. स्कूल या कॉलेज की व्यवस्था का ठीक न होना
2. पर्याप्त शिक्षक न होना
3. सुविधाओं की कमी होना
4. कोर्स का समय पर शुरू न किया जाना
5. स्टडी मटीरियल का न दिया जाना
6. क्लास लेने के स्थान में परिवर्तन
7. ऑरिजनल सर्टिफिकेट देने से इनकार करना
8. संस्थान के बारे में गलत और भ्रामक सूचना देना
9. जॉब का वादा करके उसे पूरा न करना
10. कॉलेज छोड़ने पर फी न लौटाना
11. पूरे सत्र की फी एक साथ मांगना
जानें अपने अधिकार: दुकानदार नहीं ले सकता थैले के Extra पैसे और चार्जेज सेवा
फोरम ने आदेश दिया कि ग्राहक को थैले का पैसा देने के
लिए बाध्य नहीं किया जा सकता और ऐसा करना सीधे-सीधे अपनी सेवा में कमी करना है
मर्चेंट द्वारा
चंडीगढ़ उपभोक्ता आयोग ने हाल में बाटा इंडिया
लिमिटेड पर एक ग्राहक से जूते का डिब्बा ले जाने के लिए पेपर बैग के लिए तीन रुपया
लेने पर नौ हजार रुपये का जुर्माना लगाया. कानून के जानकारों का कहना है कि
उपभोक्ता आयोग का यह आदेश पूरे देश में वैधानिक रूप से लागू होगा और अगर थैले को
उसी स्टोर से लिया गया है जहां से सामान खरीदा गया है तो फिर स्टोर उस थैले के लिए
ग्राहक से अलग से चार्ज नहीं कर सकता. फोरम का यह आदेश
दिनेश प्रसाद रतूड़ी की शिकायत पर आया है जोकि काफी सुर्खियों में आया |
रतूड़ी ने उपभोक्ता
फोरम (Consumer Forum) को बताया कि
उन्होंने पांच फरवरी को सेक्टर 22- d के जूते के स्टोर
से एक जोड़ी जूता खरीदा. स्टोर ने कीमत 402 रुपये ली जिसमें
बैग की कीमत भी शामिल थी.
रतूड़ी ने यह कहकर
इसका विरोध किया कि बाटा एक तरफ तो थैले के लिए उनसे पैसा ले रहा है और दूसरी तरफ
थैले पर उसका ब्रांड भी छपा हुआ है जो कि न्यायोचित नहीं है. रतूड़ी ने तीन{3 RUPEE} रुपये का रिफंड और सेवा में कमी के लिए मुआवजा मांगा. फोरम ने कागज के थैले के लिए अतिरिक्त चार्ज लेने पर बाटा
को लताड़ा जोकि कंजूमर सुरक्षा के लिए ही कदम उठाया गया उस ग्राहक द्वारा |
ये भी पढ़ें:
https://www.deevaaanshi.com/consumer-protection-act
https://www.deevaaanshi.com/File-complaint-in-consumer-court
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https://www.deevaaanshi.com/police-not-take-action-on-crime
https://www.deevaaanshi.com/File-complaint-in-consumer-court
https://www.deevaaanshi.com/how-rich-people-invest-money-in
https://www.deevaaanshi.com/police-not-take-action-on-crime
फोरम ने आदेश दिया
कि ग्राहक को थैले का पैसा देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता और ऐसा करना
सीधे-सीधे सेवा में कमी करना है. उपभोक्ता फोरम ने आदेश दिया कि यह स्टोर की
ड्यूटी है कि वह उसका सामान खरीदने वाले को मुफ्त में थैला उपलब्ध कराए.
दिल्ली स्थित वकील सागर सक्सेना ने कहा, 'उपभोक्ता अदालत का यह फैसला पूरे देश में कानूनी रूप से
मान्य है. लोग देश में कहीं भी इस आदेश का जिक्र कर सकते है और थैले के लिए पैसा
देने से बच सकते हैं. आदेश में साफ है कि अगर थैला पर्यावरण हितैषी है तो भी
दुकानदार उसके लिए अतिरिक्त पैसा नहीं ले सकता|
डाक -सेवा से सम्बंधित कंजूमर केस -निम्नलिखित
शिकायतों (complaints) पर भी आप
कंस्यूमर कोर्ट (consumer court)
में केस दर्ज करवा सकते है |
डाक विभाग की लापरवाही के चलते हुए नुकसान के खिलाफ
समय पर सामान की डिलीवरी न देने के कारण उपभोक्ता फोरम ने भारतीय डाक को
सेवा में कमी का दोषी माना और उपभोक्ता को हर्जाना देने का आदेश दिया। कमीशन ने
माना कि समय पर सामान की डिलीवरी नहीं होने से उपभोक्ता को परेशानी का सामना करना
पड़ा। इस मामले में मध्य प्रदेश स्टेट कंज्यूमर कमीशन ने डाक विभाग की अपील को
खारिज करते हुए माध्यमिक शिक्षा मंडल पोस्ट ऑफिस के सब पोस्टमास्टर को सेवा में
कमी का दोषी माना। कमीशन ने विभाग को आदेश दिया कि वह उपभोक्ता को पार्सल भेजने
में भुगतान की गई राशि, 10 हजार रुपए {10
THOUSAND RUPEES}हर्जाना और 2 हजार रुपए परिवाद
व्यय का भुगतान करे।
क्या था मामला
जानिए हमारे साथ
1.
भोपाल के अवधपुरी इलाके के रहने वाले निवासी सुशांत राय ने
माध्यमिक शिक्षा मंडल स्थित पोस्ट ऑफिस जाकर 11 फरवरी 2014 को नई दिल्ली एक पार्सल भेजा था। लेकिन पार्सल निर्धारित
समय पर वहां नहीं पहुंचा। इस पर 3 मार्च को
उन्होंने माध्यमिक शिक्षा मंडल स्थित पोस्ट ऑफिस में संपर्क किया लेकिन उन्हें कोई
जानकारी नहीं दी गई। तब उन्होंने इसकी शिकायत डाल विभाग में की। लेकिन विभाग ने
बिना किसी कार्रवाई के उनकी शिकायत को बंद कर दिया।
2.
8 अप्रैल 2014 को उनका पार्सल उन्हें वापस मिला। वह खुला हुआ था और उसमें
से कई सामान गायब थे। यह देख उन्होंने उपभोक्ता फोरम जाने का निश्चय किया और जिला
फोरम में डाक विभाग के खिलाफ केस फाइल कर दिया। जहां से उन्हें जीत मिली। इस पर
डाक विभाग ने राज्य आयोग में अपील कर दी। राज्य आयोग ने दोनों पक्षों को सुना।
सुनवाई के बाद आयोग ने डाक विभाग की ओर से दायर की गई अपील को खारिज कर दिया और
जिला फोरम द्वारा तय किए गए मुआवजे को देने का निर्देश दिया।
आपके भी नुकसान की
हो सकती है भरपाई
1.
कोई भी कर सकता है शिकायत
उत्पाद या सेवा में किसी भी तरह की समस्या होने पर उपभोक्ता या उसके आधार कोई
दूसरा व्यक्ति कंज्यूमर फोरम में शिकायत दर्ज करा सकता है। इंडिविजुअल्स के अलावा
कोई पंजीकृत संस्था भी अपनी शिकायत कंज्यूमर फोरम में कर सकती है।
2.
यहां करें शिकायत जब भी कभी हो आपको समस्या
शिकायत कहां करनी है इसका निर्धारण कंज्यूमर के
नुकसान के आधार पर किया जाता है। अगर नुकसान 20 लाख रुपए से कम
का है तो जिला फोरम में इसकी शिकायत की जा सकती है। 20 लाख से ऊपर और 1 करोड़ रुपए से कम
का नुकसान होने पर राज्य आयोग पर शिकायत दर्ज करानी होती है। अगर नुकसान एक करोड़
रुपए से ज्यादा है तो राष्ट्रीय आयोग पर शिकायत दर्ज करानी होती है। इसके अलावा निचले फोरम से खारिज होने के बाद ऊपर की फोरम
में शिकायत की जा सकती है। कंज्यूमर
उपभोक्ता मामले की हेल्पलाइन (1800114000) और बेवसाइट (consumerhelpline.gov.in) पर जाकर भी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। इसलिए समय पर एक्शन
जरूर ले |
3.
सादे कागज में लिख कर की जा सकती है शिकायत कंजूमर कोर्ट में
उपभोक्ता एक सादे कागज पर अपनी शिकायत लिखकर फोरम में
दे सकता है। शिकायत में मामले का पूरा ब्यौरा होना चाहिए, जैसे कि घटना कहां और कब की है। इसके साथ ही शिकायत के
समर्थन में उपभोक्ता को सामान का बिल और अन्य दस्तावेज भी पेश करना होता है।
शिकायत पत्र में यह भी लिखा जाता है कि आप सामने वाली कंपनी से कितनी राहत चाहते
हैं।
4.
नाममात्र की देनी होती है फीस
उपभोक्ता फोरम में 5 लाख रुपए तक के दावे पर कोई कोर्ट फीस नहीं लगती। इससे ऊपर
की राशि के दावे के लिए नाममात्र की कोर्ट फीस जमा करना होगी। 5 लाख से 10 लाख रुपए तक के
दावे के लिए उपभोक्ताओं को 200 रुपए की कोर्ट
फीस जमा करनी होगी। और करोड़ तक के दावे में जोकि करोड़ से ऊपर का अधिकतम 5000 रुपया का डिमांड
ड्राफ्ट है |
5.
SERVICES से सम्बंधित कंजूमर केस -निम्नलिखित शिकायतों (complaints) पर भी आप कंस्यूमर कोर्ट (consumer court) में केस दर्ज करवा सकते है |
डेढ़ माह में LIC को करना होगा भुगतान और लगेगा
12 फीसद ब्याज, जानिए क्या है मामला
Lucknow News
लखनऊ में ग्राहक को बीमा का भुगतान न देने पर एलआइसी
को उपभोक्ता फोरम ने दिया डेढ़ माह में भुगतान करने का आदेश।
जिला उपभोक्ता प्रथम के न्यायिक सदस्य राजर्षि शुक्ला
ने लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति, वित्त अधिकारी और महाप्रबंधक को आदेश दिया है कि
स्वर्गीय पुत्तन लाल द्वारा कराए गए बीमा की राशि उनके पुत्र राजेश को सौंपें {न्यायधीस द्वारा सुनाया गया }।
एलआइसी से बीमा कराने के बाद उपभोक्ता को उसका लाभ न देने पर फोरम ने सख्त
रवैया अपनाया है। बीमा राशि ना दिए जाने की शिकायत पर कुलपति, वित्त अधिकारी व प्रबंधक को जिम्मेदार बताते हुए यह
आदेश दिया गया कि वह डेढ़ माह के अंदर देय नौ फीसद ब्याज के साथ राशि अदा करें।
फोरम ने कहा कि यदि तय अवधि में भुगतान नहीं किया गया तो कुल देय राशि पर 12 फीसद वार्षिक की दर से ब्याज देना होगा।
नरही निवासी राजेश कुमार के मुताबिक उसके पिता स्वर्गीय पुत्तनलाल लखनऊ
विश्वविद्यालय के आर्ट फैकल्टी में एक जुलाई 1981से चपरासी के पद पर कार्यरत थे। सरकार द्वारा चलाई जा
रही पेंशन व सामूहिक बीमा योजना के तहत उन्होंने एलआइसी से बीमा कराया था। प्रीमियम की राशि वेतन से प्रति माह कटती थी। 30 नवंबर,2007 को उनकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के बाद पुत्र राजेश ने
बीमा राशि के भुगतान के लिए आवेदन किया। बीमा कंपनी के साथ विश्वविद्यालय भी
भुगतान में टालमटोल करता रहा। तंग आकर राजेश ने जिला उपभोक्ता फोरम में वाद दायर
किया। न्यायिक अधिकारी राजर्षि शुक्ला ने मामले की सुनवाई के उपरांत एलआइसी के
प्रबंधक पेंशन समूह, लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलसचिव व वित्त अधिकारी को
आदेश दिया कि 45 दिनों के अंदर बोनस सहित एक लाख 34 हजार रुपये {1 LAKH 34 THOUSAND } नौ फीसद वार्षिक ब्याज की
दर से अदा करें।
ग्राहक {consumer} और उपभोक्ता के बीच अंतर:-
- वह व्यक्ति जो किसी विक्रेता से माल या सेवाओं को खरीदता है उसे ग्राहक {consumer} के रूप में जाना जाता है। माल या सेवाओं का उपयोग करने वाला व्यक्ति उपभोक्ता के रूप में जाना जाता है
- ग्राहक को क्रेता या ग्राहक {consumer} के रूप में भी जाना जाता है जबकि उपभोक्ता माल का अंतिम उपभोक्ता है।
- ग्राहक {consumer} वस्तुओं को पुनर्विक्रय के उद्देश्य से या उसके व्यक्तिगत उपयोग या किसी अन्य व्यक्ति की ओर से जोड़ने के उद्देश्य से खरीद लेता है। उपभोक्ता इसके विपरीत है जो केवल उपभोग के उद्देश्य से ही माल खरीदता है।
- ग्राहक {consumer} एक व्यक्ति या व्यवसाय इकाई हो सकता है, जबकि उपभोक्ता एक व्यक्ति, परिवार या लोगों का एक समूह हो सकता है।
- ग्राहक {consumer} उत्पाद या सेवा की कीमत चुकाता है, लेकिन वह दूसरे पक्ष से उसे वसूल कर सकता है, यदि उसने किसी भी व्यक्ति की ओर से उसे खरीदा हो। इसके विपरीत, उपभोक्ता वस्तुओं की कीमत अदा नहीं करता, जैसे सामान की भेंट की जाती है या यदि वे किसी बच्चे के माता-पिता द्वारा खरीदी जाती हैं।
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नए नियम :
कंज्यूमर प्रोटेक्शन बिल 2019 (Consumer Protection Bill
2019) 1 दिसंबर से लागू होगा यह नियम
कंज्यूमर
प्रोटेक्शन बिल 2019 (Consumer
Protection Bill 2019) 1 दिसंबर से लागू होगा. ग्राहक को उसका अधिकार दिलाने वाली
मध्यस्ता, कंज्यूमर
प्रोटेक्शन अथॉरिटी, ई-कॉमर्स
गाइडलाइंस दिसंबर से लागू होंगी. बता दें कि कंज्यूमर प्रोटेक्शन बिल 2019 (Consumer Protection Bill 2019) संसद के दोनों सदनों में पास होने और राष्ट्रपति (President) से मंजूरी मिल जाने के बाद एक्ट बन गया है. नए बिल में ग्राहकों को बिना वकील के लड़ने का अधिकार मिला
है जोकि कंजूमर को प्रोटेक्शन देगा
नई गाइडलाइंस से
ग्राहकों को फायदा
कंज्यूमर अफेयर
सचिव अविनाश श्रीवास्तव ने कहा कि कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी, ई-कॉमर्स पर नियम बनेंगे. दिसंबर से कंज्यूमर प्रोटेक्शन
बिल 2019 लागू होगा.
ई-कॉमर्स गाइडलाइंस पर काम शुरू हो गया है. कंपनियों की रिफंड, एक्सचेंज और शर्तें साफ होंगी.
बिना वकील आप लड़
सकते हैं केस
कंज्यूमर
प्रोटेक्शन बिल में सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी (CCPA) को कई अधिकार दिए गए हैं. इससे ग्राहकों की परेशानियां दूर
होंगी. CCPA में
इन्वेस्टिगेशन विंग भी होगा. अब जिला में 1 करोड़ रुपये तक की शिकायत और राज्य स्तर पर 10 करोड़ रुपये की शिकायत कर सकते हैं. पहले वकील रखना पड़ता
था, अब बिना वकील के
आप लड़ सकते हैं केस. नए बिल में {कंज्यूमर प्रोटेक्शन बिल 2019 (Consumer Protection Bill 2019}ग्राहकों को बिना वकील के लड़ने का अधिकार मिला है.
विज्ञापनों में
झूठे दावे करने पर जेल जाएंगे सेलेब्रिटीज|
8 जुलाई,2019 को लोकसभा में उपभोक्ता संरक्षण बिल
· उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री रामविलास पासवान ने 8 जुलाई,2019
को लोकसभा
में उपभोक्ता संरक्षण बिल {NEW CONSUMER PROTECTION BILL 2019}, 2019 पेश किया। बिल उपभोक्ता संरक्षण एक्ट, 1986 का स्थान लेता है। बिल की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित
हैं :
·
· उपभोक्ता की परिभाषा :
उपभोक्ता वह
व्यक्ति है जो अपने इस्तेमाल के लिए कोई वस्तु खरीदता है या सेवा प्राप्त करता है।
इसमें वह व्यक्ति शामिल नहीं है जो दोबारा बेचने के लिए किसी वस्तु को हासिल करता
है या कमर्शियल उद्देश्य के लिए किसी वस्तु या सेवा को प्राप्त करता है। इसके
अंतर्गत इसमें इलेक्ट्रॉनिक तरीके, टेलीशॉपिंग, मल्टी लेवल मार्केटिंग या सीधे खरीद सामान के जरिए किया जाने वाला सभी तरह का ऑफलाइन या ऑनलाइन
लेन-देन शामिल है।
· उपभोक्ताओं के अधिकार : बिल में उपभोक्ताओं के छह{6} अधिकारों को स्पष्ट किया गया है जिनमें निम्नलिखित
शामिल हैं :
· (i) ऐसी वस्तुओं और सेवाओं की मार्केटिंग के खिलाफ
सुरक्षा जो जीवन और संपत्ति के लिए जोखिमपरक हैं,
· (ii) वस्तुओं या सेवाओं की क्वालिटी, मात्रा, शक्ति, शुद्धता, मानक और मूल्य की जानकारी
प्राप्त होना,
· (iii) प्रतिस्पर्धात्मक मूल्यों पर वस्तु और सेवा उपलब्ध
होने का आश्वासन प्राप्त होना, और
· (iv) अनुचित या प्रतिबंधित व्यापार की स्थिति में मुआवजे
की मांग करना।
· केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण अथॉरिटी : केंद्र सरकार उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देने, उनका संरक्षण करने और उन्हें लागू करने के लिए
केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण अथॉरिटी (सीसीपीए) का गठन करेगी। यह अथॉरिटी उपभोक्ता
अधिकारों के उल्लंघन, अनुचित व्यापार और भ्रामक
विज्ञापनों से संबंधित मामलों को रेगुलेट करेगी। महानिदेशक की अध्यक्षता में
सीसीपीए की एक अन्वेषण शाखा (इनवेस्टिगेशन विंग) होगी, जो ऐसे उल्लंघनों की जांच या इनवेस्टिगेशन कर सकती
है।
· सीसीपीए निम्नलिखित कार्य
करेगी : (i) उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन
की जांच, इनवेस्टिगेशन और उपयुक्त मंच पर
कानूनी कार्यवाही शुरू करना,
· (ii) जोखिमपरक वस्तुओं को रीकॉल या सेवाओं को विदड्रॉ करने
के आदेश जारी करना, चुकाई गई कीमत की भरपाई करना
और अनुचित व्यापार को बंद कराना, जैसा कि बिल में स्पष्ट किया
गया है,
· (iii)संबंधित
ट्रेडर/मैन्यूफैक्चरर/एन्डोर्सर/एडवरटाइजर/पब्लिशर को झूठे या भ्रामक विज्ञापन को
बंद करने या उसे सुधारने का आदेश जारी करना,
· (iv) जुर्माना लगाना, और
· (v) खतरनाक और असुरक्षित वस्तुओं और
सेवाओं के प्रति उपभोक्ताओं को सेफ्टी नोटिस जारी करना।
· भ्रामक विज्ञापनों के लिए जुर्माना : सीसीपीए झूठे या भ्रामक विज्ञापन के लिए
मैन्यूफैक्चरर या एन्डोर्सर पर 10 लाख रुपए {10 LAKH RUPEE }तक का जुर्माना लगा सकती है। दोबारा अपराध की स्थिति
में यह जुर्माना 50 लाख रुपए{50 LAKH RUPEE} तक बढ़ सकता है। मैन्यूफैक्चरर को दो वर्ष तक की कैद
की सजा भी हो सकती है जो हर बार अपराध करने पर पांच वर्ष {5 YEAR}तक बढ़ सकती है।
· सीसीपीए भ्रामक विज्ञापनों के
एन्डोर्सर को उस विशेष उत्पाद या सेवा को एक वर्ष तक एन्डोर्स करने से प्रतिबंधित
भी कर सकती है। एक बार से ज्यादा बार अपराध करने पर प्रतिबंध की अवधि तीन वर्ष तक
बढ़ाई जा सकती है। हालांकि ऐसे कई अपवाद हैं जब एन्डोर्सर को ऐसी सजा का भागी नहीं
माना जाएगा।
· उपभोक्ता विवाद निवारण कमीशन : जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर
उपभोक्ता विवाद निवारण कमीशनों (सीडीआरसीज़) का गठन किया जाएगा। एक उपभोक्ता
निम्नलिखित के संबंध में आयोग में शिकायत दर्ज करा सकता है :
· (i) अनुचित और प्रतिबंधित तरीके का
व्यापार,
· (ii) दोषपूर्ण वस्तु या सेवाएं,
· (iii) अधिक कीमत वसूलना या गलत तरीके
से कीमत वसूलना, और
· (iv) ऐसी वस्तुओं या सेवाओं को
बिक्री के लिए पेश करना, जो जीवन और सुरक्षा के लिए
जोखिमपरक हो सकती हैं। अनुचित कॉन्ट्रैक्ट के खिलाफ शिकायत केवल राज्य और
राष्ट्रीय सीडीआरसीज़ में फाइल की जा सकती हैं। जिला सीडीआरसी के आदेश के खिलाफ
राज्य सीडीआरसी में सुनवाई की जाएगी। राज्य सीडीआरसी के आदेश के खिलाफ राष्ट्रीय
सीडीआरसी में सुनवाई की जाएगी। अंतिम अपील का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को होगा।
· सीडीआरसीज़ का क्षेत्राधिकार: जिला सीडीआरसी उन शिकायतों के मामलों को सुनेगा, जिनमें वस्तुओं और सेवाओं की कीमत एक करोड़ रुपए से
अधिक न हो। राज्य सीडीआरसी {CDRC}उन शिकायतों के मामले में
सुनवाई करेगा, जिनमें वस्तुओं और सेवाओं की
कीमत एक करोड़ रुपए से अधिक हो, लेकिन 10 करोड़ रुपए से अधिक न हो। 10 करोड़ रुपए से अधिक की कीमत की वस्तुओं और सेवाओं के
संबंधित शिकायतें राष्ट्रीय सीडीआरसी द्वारा सुनी जाएंगी।
· उत्पाद की जिम्मेदारी (प्रोडक्ट
लायबिलिटी-PRODUCT
LIABILITY):
उत्पाद की
जिम्मेदारी का अर्थ है, उत्पाद के
मैन्यूफैक्चरर, सर्विस
प्रोवाइडर या विक्रेता की जिम्मेदारी। यह उसकी जिम्मेदारी है कि वह किसी खराब
वस्तु या दोषी सेवा के कारण होने वाले नुकसान या चोट के लिए उपभोक्ता को मुआवजा
दे। मुआवजे का दावा करने के लिए उपभोक्ता को बिल में स्पष्ट खराबी या दोष से जुड़ी
कम से कम एक शर्त को साबित करना होगा।
- वह व्यक्ति जो किसी विक्रेता से माल या सेवाओं को खरीदता है उसे ग्राहक {consumer} के रूप में जाना जाता है। माल या सेवाओं का उपयोग करने वाला व्यक्ति उपभोक्ता के रूप में जाना जाता है
- ग्राहक को क्रेता या ग्राहक {consumer} के रूप में भी जाना जाता है जबकि उपभोक्ता माल का अंतिम उपभोक्ता है।
- ग्राहक {consumer} वस्तुओं को पुनर्विक्रय के उद्देश्य से या उसके व्यक्तिगत उपयोग या किसी अन्य व्यक्ति की ओर से जोड़ने के उद्देश्य से खरीद लेता है। उपभोक्ता इसके विपरीत है जो केवल उपभोग के उद्देश्य से ही माल खरीदता है।
- ग्राहक {consumer} एक व्यक्ति या व्यवसाय इकाई हो सकता है, जबकि उपभोक्ता एक व्यक्ति, परिवार या लोगों का एक समूह हो सकता है।
- ग्राहक {consumer} उत्पाद या सेवा की कीमत चुकाता है, लेकिन वह दूसरे पक्ष से उसे वसूल कर सकता है, यदि उसने किसी भी व्यक्ति की ओर से उसे खरीदा हो। इसके विपरीत, उपभोक्ता वस्तुओं की कीमत अदा नहीं करता, जैसे सामान की भेंट की जाती है या यदि वे किसी बच्चे के माता-पिता द्वारा खरीदी जाती हैं।
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कंज्यूमर अफेयर सचिव अविनाश श्रीवास्तव ने कहा कि कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी, ई-कॉमर्स पर नियम बनेंगे. दिसंबर से कंज्यूमर प्रोटेक्शन बिल 2019 लागू होगा. ई-कॉमर्स गाइडलाइंस पर काम शुरू हो गया है. कंपनियों की रिफंड, एक्सचेंज और शर्तें साफ होंगी.
कंज्यूमर प्रोटेक्शन बिल में सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी (CCPA) को कई अधिकार दिए गए हैं. इससे ग्राहकों की परेशानियां दूर होंगी. CCPA में इन्वेस्टिगेशन विंग भी होगा. अब जिला में 1 करोड़ रुपये तक की शिकायत और राज्य स्तर पर 10 करोड़ रुपये की शिकायत कर सकते हैं. पहले वकील रखना पड़ता था, अब बिना वकील के आप लड़ सकते हैं केस. नए बिल में {कंज्यूमर प्रोटेक्शन बिल 2019 (Consumer Protection Bill 2019}ग्राहकों को बिना वकील के लड़ने का अधिकार मिला है.
विज्ञापनों में झूठे दावे करने पर जेल जाएंगे सेलेब्रिटीज|
उत्पाद की जिम्मेदारी का अर्थ है, उत्पाद के मैन्यूफैक्चरर, सर्विस प्रोवाइडर या विक्रेता की जिम्मेदारी। यह उसकी जिम्मेदारी है कि वह किसी खराब वस्तु या दोषी सेवा के कारण होने वाले नुकसान या चोट के लिए उपभोक्ता को मुआवजा दे। मुआवजे का दावा करने के लिए उपभोक्ता को बिल में स्पष्ट खराबी या दोष से जुड़ी कम से कम एक शर्त को साबित करना होगा।
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