COURT KA SUMMON |
कोर्ट का समन क्या होता है? - What is Samman in Law in Hindi
“समन” का उद्येश्य अदालत में पेश होने के लिए व्यक्ति के कानूनी दायित्व के बारे में व्यक्ति को सूचित करना है जबकि “वारंट” का मतलब उस व्यक्ति को कोर्ट में लाना होता है जिसने समन को अनदेखा कर दिया है और कोर्ट में हाजिर नही हुआ है.
What is in Summon - क्या होता है समन में? : अगर किसी क्रिमिनल केस में पुलिस ने किसी को गवाह बनाया है, तो निश्चित तौर पर पुलिस ने उसका बयान रेकॉर्ड किया होगा। पुलिस सीआरपीसी की धारा-161 के तहत बयान दर्ज करती है और उस शख्स को सरकारी गवाह बनाती है। बयान पर गवाह के दस्तखत होते हैं।
ऐसे मामले में जब ट्रायल शुरू होता है तो एक-एक कर गवाहों को बयान के लिए अदालत से समन जारी होता है। समन जब किसी शख्स के पास पहुंचता है तो उस पर यह भी लिखा होता है कि उसे बतौर गवाह बुलाया जा रहा है। यह भी बताया जाता है कि उसे किस मामले में बुलाया गया है और पेशी की तारीख क्या है। ऐसे समन को रिसीव करना चाहिए और अदालत द्वारा तय तारीख पर बयान के लिए अदालत जाना चाहिए।
Warrant on refuse summon - समन रिसीव न करने पर वॉरंट : अगर कोई शख्स समन रिसीव नहीं करता, तो दोबारा समन जारी होता है। बार-बार समन जारी होने के बाद भी अगर कोई जानबूझकर अदालत में पेश नहीं होता और उसका बयान अदालती सुनवाई में अहम है तो अदालत उसके खिलाफ वॉरंट जारी कर सकती है। बिना किसी ठोस और सही कारण अगर कोई गवाह अदालत में पेश होने से बचता है तो उसके खिलाफ गैर जमानती वॉरंट जारी होता है और बाद में पकड़े जाने पर उसके खिलाफ आईपीसी की धारा-174 के तहत कार्रवाई होती है। इसके तहत छह महीने तक की कैद और एक हजार रुपये तक जुर्माने का प्रावधान है।
अगर कोई गवाह समन रिसीव करने के बाद अदालत में किसी विशेष कारण से पेश होने में असमर्थ है तो वह अदालत को लेटर लिखकर कारण बता सकता है या फिर अपने वकील के जरिए छूट ले सकता है। फिर उसकी पेशी के लिए अगली तारीख लगाई जाती है, लेकिन जो कारण अदालत को बताया जाए, उसके पक्ष में सबूत होने चाहिए। सरकारी गवाहों के प्रति कोर्ट का रवैया काफी सहयोगात्मक होता है। कोशिश होती है कि गवाह को एक ही तारीख में फ्री किया जा सके। अगर गवाह ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है और किसी कारण से उसकी पेशी सुनिश्चित नहीं हो पा रही है तो अभियोजन पक्ष की सहमति से उसे अदालत ड्रॉप भी कर देती है।
कई बार ट्रैफिक चालान के समन आते हैं। इन्हें भी फौरन रिसीव कर कोर्ट में पेश होना चाहिए। अगर ऐसे समन के बावजूद कोई शख्स अदालत में पेशी से बचता है तो उसके खिलाफ भी मोटर वीकल एक्ट के तहत कार्रवाई हो सकती है।
Different between Summon and warrant - समन और वारंट में क्या अंतर है?
इतना तो हर इंसान जानता है कि ये दोनों ही शब्द अदालती कार्रवाई में इस्तेमाल किए जाते हैं। लेकिन कोई भी इंसान इन दोनों शब्दों का सही तरीके से अंतर नहीं जानता। ज्यादातर लोगों को ये पता नहीं रहता कि दोनों के क्या मायने होते हैं। शायद आपको पता ना हो लेकिन हम आपको बता दें कि दोनों में काफी अंतर हैं। आइए आपको बताते हैं कि दोनों में क्या अंतर है?
What is summon - समन किसे कहते हैं: जब अदालत में किसी आरोपी के खिलाफ केस चलता है और आरोपी को कोर्ट में पेस होने के लिए कहा जाता है तो इसे अदालत की भाषा में समन कहा जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो समन एक कानूनी नोटिस है जो सिविल और आपराधिक मामलों में जारी किया जाता है। समन में अदालत किसी आरोपी को व्यकितगत रूप से पेश होने के लिए कहती है। समन किसी भी आरोपी को रजिस्टर्ड डाक की सहायता से भेजा जाता है। जब ये समन आरोपी को मिलता है तो उसे उसपर हस्ताक्षर करने होते हैं।
What is Warrant - वॉरंट क्या है? : वॉरंट को कानूनी आदेश कहा जाता है। वॉरंट को जज या मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किया जाता है। वॉरंट में किसी भी इंसान को गिरफ्तार करने, उसके घर की तलाशी लेने या दूसरे कदम उठाने के लिए कहा जाता है। पुलिस बिना वॉरंट के किसी भी इंसान को गिरफ्तार नहीं कर सकती, ना ही किसी के घर की तलाशी ले सकती। इन सबके लिए पुलिस के पास वॉरंट होना डरूरी होता है। वॉरंट जारी करने का अधिकार कोर्ट के पास होता है। वॉरंट को लिखकर जारी करते हैं और इसके ऊपर जारी करने वाले की मुहर और पद का जिक्र भी किया जाता है। साथ ही ये भी लिखा जाता है कि किस अपराध के लिए वॉरंट जारी किया जा रहा है।
हमें पूरी उम्मीद है कि अब आप दोनों के बीच अंतर समझ गए होंगे। समन और वॉरंट दोनों जारी किए जाते हैं लेकिन एक कोर्ट में आरोपी के खिलाफ और दूसरा किसी को गिरफ्तार करने या तलाशी लेने के लिए। कई लोगों को कानूनी समझ नहीं होती और इस कारण वो किसी के भी बहकावे में आसानी से आ जाते हैं। लेकिन हर किसी को कानून की बेसिक जानकारी होनी बहुत जरूरी होती है।
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