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FIR से लेकर सजा होने तक का प्रोसेस - FIR to Judgement in Hindi
आज के इस पोस्ट में हम बात करने वाले है रिपोर्ट लिखाने से लेकर सजा होने तक के प्रोसेस के बारे में, हम शोर्ट में बात करेंगे क्यूंकि डिटेल में जायेंगे तो पोस्ट काफी लम्बा हो जायेगा.
FIR दर्ज करना Section 154 Cr.P.C. - जब भी कोई कॉग्नेजेबल क्राइम, यानी गंभीर अपराध जैसे हत्या, बलात्कार, लूट, आदि होती है तो सबसे पहले पुलिस सीआरपीसी की धारा-154 के तहत केस दर्ज करती है। एफआईआर दर्ज करने के बाद मुजरिम की गिरफ्तारी होती है और गिरफ्तारी से 60 अथवा 90 दिनों के भीतर जांच एजेंसी को चार्जशीट दाखिल करनी होती है। अगर मामले में 10 साल या उससे ज्यादा सजा का प्रावधान हो तो पुलिस को चार्जशीट दाखिल करने के लिए 90 दिनों का वक्त मिलता है, जबकि 10 साल से कम सजा वाले मामलों में पुलिस को चार्जशीट दाखिल करने के लिए 60 दिनों का समय मिलता है, इस दौरान पुलिस छानबीन करती है।
Charge-sheet –चार्जशीट Section 173 Cr.P.C. - गैंग रेप और हत्या जैसे मामलों में 90 दिनों में चार्जशीट दाखिल की जा सकती है और इस दौरान चार्जशीट दाखिल नहीं होने पर आरोपी को जमानत मिल सकती है।
चार्ज शीट में ये चीज़े शामिल होती है :-
- (A ) दोनों पार्टियों का नाम,
- (B) सूचना की प्रकृति (nature of the information)
- (C) उन लोगों के नाम जो मामले की परिस्थितियों से परिचित हैं,
- (D क्या किसी अपराध का होना प्रतीत होता है और यदि ऐसा है, तो किसके द्वारा,
- (E) क्या Accused को गिरफ्तार किया गया है,
- (F) क्या वह अपने बंधन पर रिहा हुआ है और यदि हां, तो ज़िम्मेदारी पर या बिना किसी ज़िम्मेदारियों के,
- (G) क्या उन्हें धारा 170 के तहत हिरासत में भेज दिया गया है,
- (H) क्या महिला की medical check up की रिपोर्ट Attached की गई है, जहां जांच भारतीय दंड संहिता की धारा 376, 376a , 376b , 376c या 376d के तहत किसी अपराध से जुड़ी है।
चार्जशीट के बाद आरोपियों (accused) को उसकी कॉपी दी जाती है और फिर चार्ज पर बहस होती है। चार्ज पर बहस के बाद आरोपियों को या तो आरोप मुक्त किया जाता है या फिर चार्जफ्रेम किया जाता है। चार्जफ्रेम किए जाने के बाद अदालत आरोपी से पूछती है कि क्या उसे अपना गुनाह कबूल है और अगर वह गुनाह कबूल कर लेता है तो उसे उसी वक्त सजा सुना दी जाती है लेकिन आमतौर पर गुनाह कबूल नहीं किया जाता और अदालत में आरोपी कहता है कि वह ट्रायल फेस करेगा और फिर केस में ट्रायल शुरू होता है।
ट्रायल, आरोप और बचाव -Trial, charge and defense - ट्रायल के दौरान सबसे पहले सरकारी गवाहों के बयान दर्ज किए जाते हैं। अभियोजन पक्ष (Prosecutors) ने जिन गवाहों की लिस्ट अदालत में सौंपी होती है उनके बयान होते हैं। उनके मुख्य बयान (Main statement) के बाद आरोपी एक-एक कर उनसे जिरह (Cross examination) करता है। अगर सरकारी गवाह मुकर जाए तो फिर सरकारी वकील खुद उनसे जिरह (Cross examination) करता है।
अभियोजन पक्ष (Prosecutors) की गवाही के बाद आरोपी को अपने बचाव का मौका दिया जाता है और तब प्रत्येक आरोपी अपने बचाव में बयान दर्ज कराता है। इस बयान के दौरान उस पर लगाए गए आरोपों के बारे में उससे सफाई मांगी जाती है और आरोपी अपनी सफाई पेश करता है। आरोपियों के बयान के बाद उनके द्वारा गवाह पेश किए जाते हैं। बचाव पक्ष (Defendants) के गवाहों के बयान के बाद मामले में दोनों पक्षों की ओर से आखिरी दलीलें पेश की जाती है।
फैसला - Decision - अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष की दलील के बाद अदालत अपना फैसला सुरक्षित रखती है और फिर जजमेंट की तारीख पर अदालत अपना फैसला सुनाती है। अदालत के फैसले में अगर किसी आरोपी को दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई जाती है, तो उसके कंफर्मेशन के लिए फैसले की कॉपी हाई कोर्ट भेजी जाती है। अगर उम्रकैद आदि की सजा होती है, तो फिर उसके कंफर्मेशन की जरूरत नहीं होती।
अपील - Appeal - हाई कोर्ट में फांसी के मामले में कंफर्मेशन के लिए जो रेफरेंस आता है उसी दौरान अपील दाखिल की जाती है और अपील पर भी साथ ही सुनवाई होती है। हाई कोर्ट से अगर फांसी की सजा कंफर्म हो जाए तो फिर मामले में मुजरिम सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट से भी अर्जी खारिज होने के बाद वहां रिव्यू पिटिशन और क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल की जाती है।
दया याचिका - Mercy petition - रिव्यू और क्यूरेटिव पिटिशन खारिज होने के बाद मुजरिम राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दाखिल कर सकता है। राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद-72 के तहत दया याचिका पर विचार करने के बाद फैसला देते हैं। दया याचिका खारिज होने के बाद ट्रायल कोर्ट सरकार के आग्रह पर डेथ वॉरंट जारी करती है। इसमें फांसी की तारीख और वक्त तय होता है और फिर जेल में मुजरिम को फांसी पर लटकाया जाता है।
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