CRPC 125 |
भारत में वैवाहिक विवाद बढ़ रहे हैं और अदालतों में दहेज़, तलाक़, भरण पोषण, घरेलू हिंसा जैसे प्रकरण लगातार बढ़ रहे हैं। यह देखा गया है कि जब भी महिला अपने पति के खिलाफ अदालत का रुख करती है, वह भरण पोषण का दावा ज़रूर करती है।
पति का दायित्व है कि वह अपनी पत्नी एवं बच्चों का भरण पोषण करे और विवाद की स्थिति में भी पति को अदालत कई बार पत्नी को अंतरिम भरण पोषण का देने का आदेश देती है।
Criminal Procedure Code 1973 [CrPC] - दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 125 के अंतर्गत पत्नी अपने से भरण पोषण पाने का दावा करती है। इस कानून के कुछ आधार हैं, जो अगर किसी महिला के भरण पोषण के दावे में मौजूद नहीं हैं तो फिर हो सकता है कि पति भरण पोषण देने के दायित्व से मुक्त हो जाए। हालांकि इस कानून में आश्रितों को जिनमें पत्नी, संतान,माता पिता सम्मिलित हैं, उन्हें भरण पोषण देने का प्रावधान है, लेकिन इस आलेख के माध्यम से हम पति पत्नी के मध्य भरण पोषण के विषय के बारे में समझेंगे। दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 125 में पत्नी को भरण पोषण देने का प्रावधान है कि (1) यदि पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति : (क) अपनी पत्नी का, जो अपने भरणपोषण करने में असमर्थ है, या (ख) अपनी धर्मज या अधर्मज अवयस्क सन्तान का चाहे विवाहित हो या न हो, जो अपना भरण पोषण करने में असमर्थ है तो उसका भरण पोषण करे। अदालत इस उपधारा के अधीन भरण पोषण के लिए मासिक भत्ते के संबंध में कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान, ऐसे व्यक्ति को यह निदेश दे सकती है कि वह अपनी पत्नी या संतान के अंतरिम भरणपोषण के लिए, जिसे अदालत उचित समझे, मासिक भत्ता और ऐसी कार्यवाही का व्यय दे और ऐसे व्यक्ति को उसका संदाय करे जिसको संदाय करने का अदालत समय-समय पर निर्देश दे। परन्तु यह भी कि दूसरे परन्तुक के अधीन अंतरिम भरणपोषण के लिए मासिक भत्ते और कार्यवाही के व्ययों का कोई आवेदन, यथासंभव ऐसे व्यक्ति पर आवेदन की तामील की तारीख से साठ दिन के भीतर निपटाया जाएगा। "पत्नी" के अन्तर्गत ऐसी स्त्री भी है जिसके पति ने उससे विवाह-विच्छेद कर लिया है या जिसने अपने पति से विवाह-विच्छेद कर लिया है और जिसने पुनर्विवाह नहीं किया है। (2) भरण पोषण या अंतरिम भरण पोषण के लिए ऐसा कोई भत्ता और कार्यवाही के लिए व्यय के आदेश की तारीख से या, यदि ऐसा आदेश दिया जाता है तो, यथास्थिति, भरणपोषण या अंतरिम भरणपोषण और कार्यवाही के व्ययों के लिए आवेदन की तारीख से संदेय होंगे। (3) यदि कोई व्यक्ति जिसे आदेश दिया गया हो, उस आदेश का अनुपालन करने में पर्याप्त कारण के बिना असफल रहता है तो उस आदेश के प्रत्येक भंग के लिए ऐसा कोई मजिस्ट्रेट देय रकम के ऐसी रीति से उद्गृहीत किए जाने के लिए वारंट जारी कर सकता है जैसी रीति जुर्माने उद्गृहीत करने के लिए उपबंधित है और उस वारंट के निष्पादन के पश्चात् प्रत्येक मास के न चुकाए गए यथास्थिति भरण पोषण या अन्तरिम भरण पोषण के लिए पूरे भत्ते और कार्यवाही के व्यय या उसके किसी भाग के लिए ऐसे व्यक्ति को एक मास तक की अवधि के लिए, अथवा यदि वह उससे पूर्व चुका दिया जाता है। तो चुका देने के समय तक के लिए, कारावास का दंडादेश दे सकता है। परन्तु इस धारा के अधीन देय रकम की वसूली के लिए कोई वारंट तब तक जारी न किया जाएगा जब तक उस रकम को उद्गृहीत करने के लिए, उस तारीख से जिसको वह देय हुई एक वर्ष की अवधि के अंदर न्यायालय से आवेदन नहीं किया गया है। परन्तु यह और कि यदि ऐसा व्यक्ति इस शर्त पर भरणपोषण करने की प्रस्थापना करता है कि उसकी पत्नी उसके साथ रहे और वह पति के साथ रहने से इंकार करती है तो अदालत उसके द्वारा कथित इंकार के किन्हीं आधारों पर विचार कर सकती है और ऐसी प्रस्थापना के किए जाने पर भी वह इस धारा के अधीन आदेश दे सकती है यदि उसका समाधान हो जाता है कि ऐसा आदेश देने के लिए न्यायसंगत आधार है। यदि पति ने अन्य स्त्री से विवाह कर लिया है या उसने अन्य स्त्री को अपनी रखैल बना रखा है तो यह उसकी पत्नी द्वारा उसके साथ रहने से इंकार का न्यायसंगत आधार माना जाएगा। अदालत यह साबित होने पर आदेश को रद्द कर सकती है कि कोई पत्नी, जिसके पक्ष में इस धारा के अधीन आदेश दिया गया है पर्याप्त कारण के बिना अपने पति के साथ रहने से इंकार करती है अथवा वे पारस्परिक सम्मति से पृथक् रह रहे हैं। पति लेते हैं इस तर्क से प्रतिरक्षा : यदि पत्नी कोई नौकरी कर रही है तो कई बार पति की ओर से यह तर्क दिया जाता है, क्योंकि दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 125 में कहा गया है कि पति उस पत्नी को भरण पोषण देगा जो खुद अपना भरण पोषण करने में असमर्थ है। पत्नी अगर नौकरी करती है तो भरण पोषण के केस में पति की ओर से यह प्रतिरक्षा ली जाती है कि पत्नी असमर्थ नहीं है, जैसा कि अधिनियम में कहा गया है। पति पक्ष की ओर से पत्नी की कमाई को आधार बनाने की कोशिश की जाती है। कुछ केस ऐसे भी हैं, जिनमें पति की ओर से यह प्रतिरक्षा ली गई कि पत्नी खुद कमाने में सक्षम है इसलिए उसके भरण पोषण का आवेदन खारिज किया जाए। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का एक अहम फैसला है। शैलजा और अन्य बनाम खुबन्ना SC 2017 के फैसले में कहा गया है कि पत्नी कमाने में सक्षम है और पत्नी कमा रही है, ये दोनों अलग बातें हैं। सिर्फ इसलिए पत्नी का भरण पोषण कम नहीं हो जाता क्योंकि वह कमाने में सक्षम है। राजेश बनाम सुनीता और अन्य के केस में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि पति का यह परम कर्तव्य है कि वह अपनी पत्नी और बच्चों का भरण पोषण करे, चाहे इसके लिए उसे भीख मांगनी पड़े, उधार लेना पड़े या चोरी करनी पड़े। इस केस में पति ने अपनी पत्नी को लगभग चार साल तक मैंटेनेंस नहीं चुकाया था, जिसके बाद अदालत ने उसे 12 महीने की सज़ा सुनाई। इसके अलावा पति की ओर से अगर यह साबित कर दिया जाता है कि पत्नी बिना किसी कारण के उससे अलग रहती है तो भी न्यायालय पत्नी के भरण पोषण के आवेदन पर सुनवाई करते हुए इस तथ्य पर गौर करते हैं। अनिल बनाम मिसेज सुनीता के केस में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि पत्नी बिना किसी उचित कारण के अपने पति से दूर रह रही थी, इसलिए अदालत ने भरण पोषण के आवेदन को खारिज कर दिया। भरण पोषण के केस में जिस पक्ष के पास पूर्ण तथ्य हैं और अदालत में अगर वे साबित किए जाते हैं तो फैसला उसके पक्ष में हो सकता है। हर केस के अपने अलग अलग बिंदु और हालात होते हैं, इसलिए केस के तथ्यों को संबंधित कानून की रौशनी में देखने से पक्षकार को खुद ही आभास हो जाता है कि उसका केस कितना मज़बूत है।
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