UNDER SECTION 39 A FREE LEGAL AID |
Define The Meaning of Free Legal Aid Service in India | भारत मे विधिक सहायता का उद्देश्य
विधिक सहायता का अर्थ (Meaning of Free Legal Aid Service in India)
हमारा भारत देश प्राचीन काल से ही न्यायप्रिय देश रहा है । नीति, न्याय, धर्म आदि उसके आदर्श रहे हैं । अन्याय का उसने सदैव तिरस्कार किया है । इतिहास इस बात का साक्षी है कि भारतीयों ने असहाय और कमजोर व्यक्तियों पर कभी भी आक्रमण करने की चेष्टा नहीं की है ।
हमारे ग्रंथों में अनेक कथाएं इस प्रकार की पढ़ने को मिलती है जिसमें असहाय और निर्मल व्यक्तियों का हमेशा ही बचाव किया गया है । कानून और न्याय के क्षेत्र में भी निर्धन और असहाय व्यक्तियों को कानूनी सहायता (Legal Aid) उपलब्ध कराए जाने का प्रावधान किया गया है । हमारी न्याय व्यवस्था में विपक्ष को अपना बचाव करने का उचित अवसर प्रदान किया गया है।
भारतीय न्याय व्यवस्था का उद्देश्य कभी भी एकपक्षीय न्याय करने का नहीं रहा है । यदि कोई पक्ष निर्धन या साधन हीन है तो उसे उचित साधन जुटाए जाते हैं । विश्व के अधिकांश लोकतांत्रिक देशों (Democratic Countries) ने विधिक सहायता योजना ( Free Legal Aid Scheme) को स्वीकार किया है । विभिन्न विधियों में विधिक सहायता (Legal Aid) के संबंध में महत्वपूर्ण प्रावधान बनाए गए हैं ।
विधिक सहायता की परिभाषा (Definition of Free Legal Aid Service in India)
विभिन्न विद्वानों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने विधिक सहायता (Legal Aid) को निम्न प्रकार परिभाषित किया है
1- अंतर्राष्ट्रीय विधिक सहायता संगठन के सर थॉमस लुंड के अनुसार “विधिक सहायता (Free Legal Aid Service) से तात्पर्य किसी भी कठिन परिस्थिति में वकील से कानूनी राय प्राप्त करने के व्यक्ति के अधिकार से है।”
2- अंतर्राष्ट्रीय विधिक सहायता संगठन के अनुसार “विधिक सहायता (Free Legal Aid) इस बात का आश्वासन है कि कोई भी व्यक्ति अपने अधिकारों से केवल इसलिए वंचित ना रहे कि उसे धन की कमी या अन्य किसी कारण से विधि विशेषज्ञ की सेवाएं उपलब्ध नहीं हो सकी।
3- आंटेरियो विधिक सहायता अधिनियम 1966 के अनुसार विधिक सहायता योजना (Free Legal Aid Scheme) प्रत्येक व्यक्ति को इस बात की गारंटी देती है कि शुल्क के प्रदान करने की चिंता किए बिना उसे अपनी पसंद के वकील या विधि व्यवसाय से व्यवसाय में प्रतिनिधित्व या पैरवी करने का अधिकार एक सुरक्षित अधिकार है ।
4- सेटोन पोलक द्वारा दि इंग्लिश लीगल एंड सिस्टम में कहा गया है की मूल अर्थों में विधिक सहायता (Legal Aid) से तात्पर्य विधि के अंतर्गत अपने अधिकारों को निर्धारित और लागू कराने से संबंधित व्यक्तियों को प्रदान की जाने वाली सहायता से है । यह नाम मात्र के शुल्क पर यह मुफ्त उन व्यक्तियों को विधिक सेवाएं उपलब्ध कराती है जो अन्यथा इस में असमर्थ है ।
5- डॉक्टर एस एन जैन के अनुसार न्याय प्रशासन में निर्धनता के प्रभाव को दूर या कम करने के लिए निर्धन व्यक्तियों को उचित सहायता (Legal Aid) उपलब्ध कराना ही विधिक सहायता है ।
6- जस्टिस कृष्णा अय्यर के अनुसार न्याय के एक साधन के रूप में विधिक सहायता (Legal Aid Service) एक सामाजिक अनिवार्यता तथा न्याय प्रशासन का अभिन्न अंग है।
अतः उपयुक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि विधिक सहायता का मुख्य उद्देश्य समाज के निर्धन और कमजोर वर्ग के लोगों को मात्र पैसे की कमी के कारण न्याय से वंचित न रखकर उनके अधिकारों की सुरक्षा करना है हमारे संविधान के अनुच्छेद 39 A में भी विधि सहायता की इसी भावना को स्वीकार किया गया है ।
विधिक सहायता के उद्देश्य (Objects of Free Legal Aid)
विधिक सहायता के उद्देश्य निम्नलिखित है
1- निर्धन और कमजोर वर्ग के लोगों को मुफ्त में विधि सहायता (Legal Aid) प्रदान करना।
2- प्रत्येक व्यक्ति को उसके बचाव के लिए विधि विशेषज्ञ या वकील की सेवाएं उपलब्ध कराना।
3- वकीलों के लिए राज्य की ओर से उचित पारिश्रमिक (Remuneration) की व्यवस्था करना ।
4- स्वैच्छिक संगठनों (Voluntary Organisations) को विधिक सहायता (Legal Aid) के लिए प्रेरित करना तथा उन्हें अनुदान देना।
5- कारावास की सजा से दंडित व्यक्तियों को निर्णय की कॉपी मुफ्त देना।
6- जेल में बंदी व्यक्तियों के मामलों की अपीले उचित न्यायालय में पेश करने की व्यवस्था करना आदि ।
विधिक सहायता के मुख्य स्रोत क्या है (Main Sources of Legal Aid) विधिक सहायता के मुख्य स्रोत निम्नलिखित है।
1- अधिकार पत्र (Megna Carta मैग्नाकार्टा) विधिक सहायता (Legal Aid) का मुख्य स्रोत इंग्लैंड का अधिकार पत्र (1215) मैग्नाकार्टा में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति न्याय से वंचित नहीं किया जाएगा न्याय विक्रय की वस्तु नहीं होगी और न्याय में देर की जाएगी जस्टिस पीएन भगवती ने मैग्नाकार्टा को विधिक सहायता योजना की उत्पत्ति का प्रमुख स्रोत माना है।
2- मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, 1948 – सन 1948 का मानव अधिकार घोषणा-पत्र विधिक सहायता (Legal Aid) की उत्पत्ति की एक महत्वपूर्ण स्रोत है । इस घोषणा में कहा गया है कि सभी व्यक्ति स्वतंत्र पैदा हुए हैं । तथा वे प्रतिष्ठा और अधिकारों में समान है सभी व्यक्तियों में विवेक और तर्क हैं उनमें परसपरिक बंधुत्व का आचरण होना चाहिए । जीवन स्वतंत्रता व्यक्ति की सुरक्षा और विधि के सामने समानता उसके मूलभूत अधिकार है।
जस्टिस कृष्णा अय्यर ने कहा है कि विधिक सहायता (Legal Aid) का विश्व आदर्श इसी सार्वभौम घोषणा के अंतर्निहित है ।
3- साम्य के सिद्धांत – साम्य के सिद्धांत भी विधिक सहायता (Legal Aid) योजना के उत्पत्ति में महत्वपूर्ण भागीदार माने जाते हैं समय के सिद्धांत निम्नलिखित हैं समुदाय सद्गुण है सामिया सद्गुण है शाम में क्षमता से प्रसन्न होता है समय क्षमता पूर्ण आचरण या व्यवहार में विश्वास करता है .
उपयुक्त सिद्धांत इस बात की प्रेरणा देते हैं कि कोई भी व्यक्ति न्याय से वंचित नहीं रहेगा सभी को विधियों का समान संरक्षण मिलेगा न्याय प्रशासन में धनी और निर्धन के बीच कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा ।
4- विश्व के संविधान ( Constitutions of Word)– विश्व के संविधान भी विधिक सहायता (Legal Aid)के प्रमुख स्रोत माने जाते हैं संविधान में विधिक सहायता (Legal Aid) को स्थान दिया जाना उन्हें सार्वभौमिक मान्यता प्रदान करने का प्रमाण है भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39 का में भी विधिक सहायता (Legal Aid) को शामिल किया गया है ।
5- विभिन्न विधियां (Different Laws) वर्तमान काल में विभिन्न विधियां भी विधिक सहायता (Legal Aid) को विधिक स्वरूप प्रदान करने लगी है भारत में सिविल प्रक्रिया संहिता 1960 के आदेश 2 नियम 10 क, आदेश 33 व 44 में विधिक सहायता को स्थान दिया गया है ।
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 304 भी निर्धन व्यक्तियों को मुफ्त विधिक सहायता (Legal Aid) प्रदान कराने के बारे में प्रावधान करती है ।
6- न्यायिक निर्णय विधिक सहायता (Legal Aid) को आगे बढ़ाने में न्यायिक निर्णयों का भी महत्वपूर्ण योगदान है । न्यायालय ने समय-समय पर अपने निर्णयों के माध्यम से व्यक्ति के विधिक सहायता (Legal Aid) के अधिकार की पुष्टि की है।
7- फार्मा पापरिस (Forma Pauperis) – हेनरी अष्टम के शासनकाल में निर्धन व्यक्तियों को कानूनी सहायता उपलब्ध कराने के लिए कारगर प्रयास किए गए थे । उस समय इस व्यवस्था को फार्मा पापरिस के नाम से जाना जाता था । जो आगे चलकर इसी आधार पर सन 1951 में एक अधिनियम कहलाया ।
एम एच हासकाट बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र, AIR 1978 SC, 1548 में उच्चतम न्यायालय यानी कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मुफ्त विधिक सहायता (Free Legal Aid) प्राप्त करना व्यक्ति का अधिकार है राज्य की कृपा नहीं है ।
हुस्न आरा खातून बनाम गृह सचिव बिहार राज्य ईयर 1989 एससी 1360 में कहा गया है कि मुफ्त विधिक सहायता (Free Legal Aid) प्राप्त करना मूल अधिकार है । ऐसे मामलों में न्यायालयो को अभियुक्त के आवेदन की प्रतिक्षा नहीं करनी चाहिए । यह न्यायालय का कर्तव्य है कि वह अभियुक्त को उसे इस अधिकार का ज्ञान कराएं ।
निष्कर्ष (Conclusion)
एम पोलाक के मतानुसार “विधिक सहायता की उत्पत्ति को एक संबंधी या पड़ोसी जो किसी विवाद में फंसा हुआ है को सहयोग करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति में तलाशा जा सकता है । पोलाक का मानना है कि विधिक सहायता (Free Legal Aid) की उत्पत्ति इंग्लैंड में सन 1494 में हेनरी अष्टम के समय में हो गई थी तथा इसने सामान्य विधि के एक अंग का रूप धारण कर लिया था । यदि यह सही है कि प्राचीन काल में विधिक सहायता के अधिकार की गारंटी नहीं दी गई है, लेकिन सन 1215 में मैग्नाकार्टा ने यह व्यवस्था की गई थी कि किसी भी व्यक्ति को ना तो न्याय से वंचित किया जा सकता है और न न्याय प्रदान करने में देरी की जा सकती है ।
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